पृष्ठ:बीजक.djvu/१८३

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( १३३ )
रमैनी ।

रमैनी । ( १३३ ) प्रमाण ॥ ( रामकेनामतेपिंडब्रह्मांडसब रामकोनाममुनिभर्ममानी । निर्गुण- निरंकार के पार परब्रह्म है तासुको नामङ्कारजानी । विष्णुपूजाकैरै ध्यान- शङ्करधेरै भनहि सुबिरंचि बहुबिबिध बानी । कहैकब्बीर कोइ पारपावैनहीं राम को नामहै अकह कहानी ) ॥ ५ ॥ इति इक्यावनवीं रमैनी समाप्ती । अथ बावनवीं रमैनी। चौपाई। ज्यहिकारणशिवअजहुंबियोगी।अङ्गविभूतिलायभेयोगी १ शेषसहसमुखपार न पावै । सोअवखसमसहितसमुझावै॥ ऐसीविधिजोमोकहँध्यावै । छठयें मास दर्श सो पावै॥ ३॥ | कौनेहुं भांति दिखाई देऊ। गुप्तै रहि सुभावः सब लेऊ॥४॥ साखी ॥ कहहिं कबीर पुकारकै, सबका उहै हवाल॥ कहाहमार मानै नहीं, किमिछूटे भ्रमजाल॥५॥ ज्यहिकारणशिवअजहॅवियोगी।अंगविभूतिलायभेयोगी॥ शेषसहसमुखपारनपावासोअवखसमसाहितससुझावै॥ २॥ जाकेकारण शिवअंगमें विभूतिलगाईंकै योगीभयेपरन्तुअजहूंढौं वासों बियो- गी हैं काहेते कि जोबियोगी न हो ते तो तमोगुणाभिमानी काहे रहते ॥ १ ॥ शेष सहसे मुखते कहिकै पार न पायो तेई दुर्लभ खसम ने परमपुरुष श्रीराम- चन्द्र ते हिते सहित जीवनको समुझावै। काहेत जीवनको हित मानिकै समु- झावै है कि मोको नानिकै मेरे पासऑवै संसार दुःख न पावै ॥ २ ॥ ऐसीबिधिजो मोकहँथ्यावै । छठयें मास दर्शसोपावै ॥३॥ कौनेहुंभांति दिखाईदेऊ। गुप्तैरहि सुभाव सवलेऊ ॥४॥