पृष्ठ:बीजक.djvu/१९१

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( १४१ )
रमैनी ।

रमैन । | ( १४१) आये हैं कि, ब्रह्ममें अणिमादिकसिद्धि होइ हैं सो वह कृत्यकरिके कहे ब्रह्ममा | निकै पचास लाखवर्षके आगेकी कहै हैं सो पचास लाख यह उपलक्षण है। अर्थात् भूत भविष्य वर्तमान सब कहै हैं ॥ १ ॥ विद्या वेद पढ़ पुनि सोई । वचन कहत परतलै होई ॥ २॥ पहुंचि वात विद्या के वेता । वाहुके भर्मभये सङ्केता ॥३॥ | विद्या जो है वेद जो है सो संपूर्ण पढिलेइ अर्थात् आइ जाइ तब नौनबात कहै हैं तैौन परतक्ष होइहै कहे बाक्यसिद्धि है जाइ है ॥ २ ॥ वेविद्याके वेत्ता कहे जनय्या जे लोग हैं ते वह बातको पहुंचि कहे पहुंचतभये अणिमा- दिक सिद्ध होत भई औ ब्रह्मको जानतभये परन्तु साहबको जो है साकेत लोक ताके जानिबेको उनहूँको भ्रमभयो अर्थात् साहबको लोक न जानत भये ॥३॥ साखी ॥ खगखोजन को तुम परे, पीछे अगमअपार ॥ विन परचै किमिजानिहौ, झूठाहै हङ्कार ॥ ४॥ ॐ खग जो है हंसतिहारो स्वरूप ताके खोजबेको तुमचल्यो कि, हम अपने आत्माको स्वरूपजानैं सो साहब अगम अपार जो धोखा ब्रह्म सों लग्यो है। वाहीको अपने स्वरूप मानिलियो है जब कुछ संसार तुमको छुट्यो तब अगम अपार जो धोखा ब्रह्म है ताही को अहंब्रह्मास्मि मानिकै बैठ्यो सो वह अगम है काहूक गम्य नहीं है अपार है अर्थात् झूठा है । भाव यह है कि, जब साकेत लोक को जानोगे तब साकेतनिवासी जेपरमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनको जानोगे तब वे हंसस्वरूपदे अपने धामको लैजायँगे तबही जन्म मरणते रहित होउगे तब हंसस्वरूपपावोगे औरीभांति संसार ते न छूटो न सिद्धिमाप्त भये न ब्रह्मभये तामें प्रमाण गोसाई तुलसीदासजी को दोहा ॥ बारिमथे घृतहोइ- बरु सिकताते बरु तेल । बिनहारभजन न भवतैरै यह सिद्धांत अपेल ) १ औ कबीरहूजी को प्रमाण ॥ ‘‘रामबिनानर ढुहकैसा । बाटमाँझ गोबरौ। जैसा ॥ ४ ॥ | इति सत्तावनैवीं रमैंनी समाप्ती ।।