पृष्ठ:बीजक.djvu/२०९

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रमैनी। (१९९) जेकरे शरलागैहै सोई बाणलागे की पीर जानै सो जोः कोईसमाधि लगावै है सोई समाधि उतरेको दुःख जानैहै सो समाधि तौ तोर लागैहै ना भागु समाधिहीलगाये रहु सो तेरो भागिबो तौ बनतई नहीं है समाधि उतेरही अवैहै याते यह धोखा छोड़िदे कबीरजी कहै हैं सुखसिंधु जे साहब तिनको निहारु जिनको एकबार निहारे समाधि लगी रहै अर्थात् जो एकहूबार साहबके सम्मुख भयॉहै; सो फिरिनहीं संसार में बच्योहै तामेंप्रमाण ( एकोपि कृष्णस्यकृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेनतुल्यः ॥ दशाश्वमेधपुनतिजन्मकृष्णप्रणामीनपुनर्भवाय ॥ इति ) अथवा जाके बाण लगै है सोई पीर जानै है सो जो साहब में लगे हैं तेई धोखाकी पीर जानै हैं कि हमयोगमें यज्ञादिमें लगि कै नाहक जन्म गैवाये।सो कबीर जी कहै हैं कि साहबको दुर्लभनानि तें लागु तौभागु न साहव सुखसिंधुदै तिनका तूनिहारु तौ ये सब धोखनकी पीर दूर करि देयँगे तब अपराध तेरो न गर्नेगे । तामें प्रमाण।।*कथंचिदुपकारेणकृतेनैके नतुष्यति ॥ नस्मरत्यपकाराणांशतमप्यात्मवत्तया इतिबाल्मीकीये ॥ ६ ॥ इति अड़सठवीं रमनी समाप्ता । अथ उनहत्तवीं रमैनी। चौपाई। ऐसा योग न देखा भाई । भूला फिरै लिये गफिलाई ॥१॥ महादेवको पंथ चलावै । ऐसो वड़ो महंत कहावै ॥ २ ॥ हाट वाट में लावै तारी । कच्चे सिद्धन माया प्यारी ।।३॥ कवदत्तै मावासी तोरी । कव शुकदेव तोपची जोरी ॥४॥ कब नारदवंदूक चलाया। व्यासदेव कब बव वजाया ॥५॥ करहिं लड़ाई मतिकेमंदाईहैं अतिथि कि तरकशवंदा॥६॥ भयेविरक्त लोभमनठाना। सोना पहिरि लजावै बाना ॥७॥ घोरा घोरी कीन्ह वटोरा । गांवपाय यश चलो करोरा ८॥