पृष्ठ:बीजक.djvu/२२५

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रमैनी । ( १७५) तौलि जाइहै कि हलुकै गरूहै अर्थात् अहंब्रह्म मानिबो तो धोखाहै जो कछुहोइ तोकहिजाई औतोलि जाई ॥३॥ जौनेलोकमें न भूखह न तृषाहै न धूप न छाहीं है न दुःखहै न सुखहै तौने साहबके लोकमें प्रकाशरूप ब्रह्म है॥४॥ साखी ॥ अपरमपरमरूपमगुरंगी, नहिंतेहिसंख्याआहि ॥ कहाहिंकवीर पुकारकै, अद्भुत कहिये ताहि ॥६॥ वह साहबको लोक परमरूपहै ताको प्रकाश जो है वह ब्रह्म सो परमपुरुष है कहे परम नहीं है तौनेको आपनेहीको मानिबो जो है कि वह ब्रह्महमहीं हैं। सो धोखाहै तानेके मगमरगे जीव तिनकी संख्या नहीं है अर्थात् वहीं प्रकाशमें भरेरहे जे समष्टि जीवह ते व्याष्ट हृगये हैं तिनकी संख्या नहीं है सो कबीर जी पुकारिकै केहे हैं कि आपही कल्पना करिकै वह प्रकाश रूप ब्रह्म कोमान्यो कि वह ब्रह्मभैहौं सो वह तो लोकप्रकाशहै हे जीव! वहप्रकाशब्रह्म नहीं वैसकैहै यही धोखाम जीव बुडो जाइ है यह बड़ो आश्चर्य हैं औ जोयह पाठहोइ ॥ अपरमपारै परमगुरु ज्ञानरूप बहुआहि ॥ तो यह अर्थ है अपरम जाहै प्रकाशरूप ब्रह्म ताहू के पारजाहै परमलोक जाको प्रकाश वह ब्रह्महै ताको परमश्रेष्ठकहेमालिक ने परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनको न जान्यो वहन है प्रकाशबह्म ताको जोज्ञान किया कि ब्रह्ममहैं। वहै जो है धोखा ब्रह्म तेहिते बहुंआहि कहे जीब बहुत द्वैगये काहेते कि ज्ञानबहुत है ज्ञानीज्ञान करिकै ब्रह्म मानै हैं औ योगी ने ते ज्योतिरूप में आत्माको मिलाइकै ब्रह्म माने हैं। इत्यादिक नानारूप करिकै ऐक्यमानै हैं औ और सगुण उपासनावारे कोई चतुर्भुज कोई अष्टभुज कोई देबी कोई गणेश कोई सर्य इत्यादिकनमें ऐक्यमौन हैं ज्ञानकरिकै तेहिते ज्ञाननाना हैं औ साहब तो मनबचनके परे वह लोक में एकही बना है ॥ ५ ॥ इति सतहत्तरवी रमैनी समाप्त ।