पृष्ठ:बीजक.djvu/२२७

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रमैनी। ( १७७) पुत्र कलत्र रहैं लवलाये । जम्बुकनाई, रहमुहबाये ॥४॥ कागगीधदोउमरणविचारै। शूकरश्वानदोउपंथनिहारै॥५॥ धरतीकहै मोहिमिलि जाई। पवन कहै मैंलेव उड़ाई ॥६॥ अगिनिकहै मैं ई तन जारों। सोनकहै जोजरतउवारों ॥७॥ पुत्र कलत्र जो घरकी स्त्री को लालच लगाये रहै हैं धनलेवे की औ वाको . उनकी चिंता म मांससुखान जात है जैसे सियार मांस खाबेको मुंहफारे रहै है। तैसे वोऊहैं ॥४॥ औकाग ने गीधने हैं शूकर जेहैं श्वान जैहैं ते मरनको पंथ तेरो निहारै हैं या बिचारै हैं कि जो मरै तौ हम मांसखायँ॥५॥औधरती कहै है कि मोहीं में मिलिजाइ पवन कहै है कि याकी खाक मैं उड़ाय लैजाउँ॥ ६॥ अग्नि चाहै है कि याके तनको जारिडारों सो या बाते कोई नहीं कहै है जाते जरत में उबार होइ बचिजाय ॥ ७ ॥ जेहिघरको घरकहै गवारे । सो वैरी है गले तुह्मारे ॥ ८ ॥ सोतनतुमआपन कै जानी विषयस्वरूपभुलेअज्ञानी ॥६॥ साखी । यतने तनके साझिया, जन्मो भरिदुखपाय ॥ | चेतत नाहीं बावरे मोर, मोर गोहराय ॥१०॥ जेहि घरको शरीरको तू कहै है कि मेरो है सोघरशरीर तेरेगले की बेरीकहे फांसी है अथवा बैरी है यमके यहां गलाकटावेंगें ॥८॥ हे अज्ञानी ! तौनेशरीरको तू आपनो मानिकै विषयनमें परिकभूल गये है ॥९॥ सो यतने जेतने कहिआये ते यहि तनके साझी हैं तिन तेजन्म भरि हैं दुःखपायकै हेबावरे ! कहे मूढ मोरमोर तें गोहररावै है कि यातनमेरो है अजहूं चेतनहीं करै है कि यातनैमोका फांसे है ॥ १० ॥ | इति अठहत्तरवीं रमैनी समाप्ती ।