पृष्ठ:बीजक.djvu/२३२

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(१८२) बीजक कबीरदास । धारण करनेवाला जो जीव क्षत्री सो पत्री कहे पक्षी है जौने वृक्षचारउ युगमें पक्षीद्वै गयो अथवा क्षयमान ने नवगुण हैं तिनको धारणकीन्हे जो जीव सोई पत्र कहे। पक्षी है नवगुण कौन हैं सुखदुःख इच्छा प्रयत्न राग द्वेषधर्मधर्म भावना याहेतरहको जीव जो है पक्षी सो पापपुण्य फल ताको खाइबेको चारउयुग अधिकारी ॥ २ ॥ तिन फलनमें बहुत स्वादहै कछु कहो नहीं जाये। तेहीवृक्ष में जीवरूप पक्षी चरित्रकरै है सो आगे कहै हैं ॥ ३ ॥ नटवरसाजसाजिया साजी । सो खेलैसो देखै बाजी ॥४॥ मोहावपुरायुक्तिन देखा । शिवशक्ती बिरंचिनहिंपेखा ॥२॥ नटके बेटा कैसी साज सानि कहे नानारूप धारण करिकै अवैनाय है जो वाजीगर जौने खेलखेल है तौने देखै है अर्थात् ने ब्रह्ममें लगेते ब्रह्मही देखे हैं जे जीवात्मामे लगैहूँ ते जीवात्मैको देखैहैं इत्यादि जो जौने मतमॅहैं सो ताही में लगोहै सच बताये लरैधावै है काहे ते उनकी वासना अनेक जन्म ते वहीं है ॥ ४ ॥ गुरुवाकारकै मोहा जो बपुराजीव है सो साहबके जानिबे की युक्ति | न देखते भयो शिवशक्तयात्मक जगत् पूर्ब कहिआये हैं सो या शिवशक्ति बिराच मायारूप या बात न जानतभये ॥ ५ ॥ साखी । परदे परदे चलिगया, समुझि परी नहिंवानि ॥ जो जानै सो बाचि है, होत सकलकी हानि ॥ ६॥ परदे परदे कहे बिना साहबके जाने संसारमें जीव चलिगया कहे संसारमें जातरहा बाणी जो है वेद शास्त्र सो तात्पर्य करिकै साहबको बतावैहै सो जीव- को न समुझिपरयो जो कोई वेदशास्त्रादि में तात्पर्य करिकै परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्रको जानै सोई बाचैहै अपरोक्ष अर्थ जगत्मुख जानिकै सबकी हानि होतही जाय है ॥ ६ ॥ इति बयासिवीं रमैनी समाप्तः ।