पृष्ठ:बीजक.djvu/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १८६) बीजक कबीरदास । वुझावै सो गुरुनहीं मिलै है इहांदुःखसंताप कष्ट तीनबार जो कह्या तामें कुछ भेद है दुःख वह कहावै है जो काहूहमारे होइहै औं जा रोगादिकन कारकैहोइ है सो संकष्टकहाँव है औ जो कोई हानिते होइहै सो संताप कहावै है ॥ ६ ॥ मोरतोरमें जरजग सारा । धिगजीवन झूठो संसारा ॥७॥ झूठेमोहरहाजगलागी। इनतेभागि बहुरि, पुनिआगी ॥८॥ जेहितकै राखे सवलोई । सो सयान बाचे नहिं कोई ॥९॥ | औ तोर मोर करिकै सब संसार जर जाइ हैं यहसंसार साहब को चिद्रूप करिकै नहीं देखै वे यह संसारको संसाररूप करिकै देखै हैं यही झूठो है सों ऐसे झूठे संसार में जीवनको जीबेको धिकार है ॥ ७ ॥ मायाको जो मोहहैं। सो सुत्र संसारमें लगिरह्यो है सो झूठो है इनते जो कोई भागिबेऊ कियो ती फेरि वही झूठे ब्रह्मग्निमें जैरै है ॥ ८ ॥ जेजे सबलोई कहें लोगन को हितकै राखै हैं ते सयान काळसे कोई नहीं बचे हैं तु कैसे। बेचैगो ॥ ९ ॥ साखी ॥ आपुआपु चेतैनहीं, औ कहौतौ रिसिहा होइ ॥ | कहकवीरसपनेजगै, निरास्तअस्तिनाहकोइ ॥१०॥ आपु आपुकहे आपने स्वरूपको नहीं चेते है कि मैं परमपुरुष श्रीरामचन्द्र- केह, सो मैं जो समुझाऊंहों तौ रिसहा होइ है सो कबीरजी कहै हैं कि जो सपने जागै सपन कहा है देहको अभिमानी मनमुखी है जागे कहे अपने मनते यह बिचारिलेइ कि मैं जाग्यो मैं ब्रह्म है गयो अथवा आपनेको जान्यो मैंहीं सबको मालिक और कोई दूसरो छोड़ावनवारो नहीं है में अपने का जान्यो सो छूटिगयो सो कोई साहबको न मान्यो सो निरस्तिकहे नास्तिक है । सो अस्तिकहे आस्तिक न होइहै सो कहा जागैहै नहीं जागै है अर्थात् वह ज्ञानतो धोखाहै संसार समुद्र ते तेरी रक्षाकहा करैगो ताते वहसाहबको समु- झिजाते तेरोसंसार समुद्रत उवार करिदेइ ॥ १० ॥ इति चौरासिवीं रमैनी सम्पूर्णा । इति ।