पृष्ठ:बीजक.djvu/२७१

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शन्छ । (२२१ ) । उहां समेटिकै कहियेहैं अबइहां ररूपा भक्तिको मदको रूपककरिके कहै हैं । अध कहे नीचे के लोक ऊर्जकहे ऊंचेके लोक पय्यंत जो सारासारको. विचार ( सारकहे चित् अचिरूप साहब को या जगत् मानिव औ असार कहे नानात्व जगत् मानिबो या जो विचार ) साई भाठी रोपतमये । औ तेहितेभयो ने यथार्थज्ञान कि, सब सच्चिदानन्द स्वरूपही काहेते चितौं अचत साहबको रूप है यःहहेतु ते साई ब्रह्म अग्नि उदगारीक वारत भये । महुवा नरमें धेरैहै इहांमदन जोभनोन तीनैजोहै शरीरनर अर्थात् वीर्यते शरीर हाइहै सो अंतःकरण में मूंदे । जे साहबकी अनेक प्रकारकी जो छीला तिनके जे ज्ञान ध्यान तेई महुवादिक द्रव्यहैं, तिन्हैं जाकर्गनकी बरोबरि मानिबो जो या भ्रम सोई जो कर्मरूप कसमल ताको काटिडारयो, तब निश्चयात्मक बुद्धिजे पात्र तामें रसरूपाभक्त रूपजो अगारी सो निरंतर चुवनलागी ॥ २ ॥ गोरख दत्त वाशिष्ठ ब्यास कवि नारद शकसुन्नि जोरी। सभा वैठि शंभू सनकादिक तहँ फिरि अधर कटोरी ॥३॥ गोरख दत्तात्रय बशिष्ठ व्यास कवि कहेशुक नारद शुकमुनि कहे शुक्राचार्य तेई सब जारि जोरि इकट्ठाकर धरतभये । औ सभाके बैठैया ने हैं शंभु सनकादिक तहां रसरूपा भाक्त जो सुधा रस तेहि करिके भरी जो है प्रेम रूपी कटोरी सो तिनके धरहें हे मनकरिके न कोई धरिसकै है अर्थात् न मनमें आवै न वचनमें अवै वाके पानकरतमें छकि सब जाय । रसवाच्यमें नहीं अवैहे यहसर्वत्र ग्रंथन में प्रसिद्धहै ।। ३ ॥ अंबरीष औ याज्ञ जनक जड़ शेष सहस मुख पाना । कहॅलों गनों अनंत कोटिले अमहल महल देवाना ॥४॥ | अंबरीष औ याज्ञवल्क्य औ जड़भरत औ शेषकहे संकर्षण औ सहसमुख | कहे शेषनाग ते पान करतभये । सो कहांढों मैं गनों परम परपुरुष श्रीरामचन्द्र के जे अमहल महल अनंत कोटि हैं ताहीमें लीनभये औदिवाना होतभये कहे महोतभये । इहां अमहलमहल जोक ह्यो सोऊ जे अयोध्याजीके महलं अमहल कहे महल नहीं हैं अर्थात् प्राकृत पांचभौतिक नहीं हैं । अरु महल