पृष्ठ:बीजक.djvu/२७८

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(२२८) बीजक कबीरदास । है जाय तौने साहबसों जो कोई ( जहँ साहबको मत गहिकै ) परतीति कहें । विश्वासकीन है सो जानतहै कहे संसारहीमें अमर है गयो है ।। ४ ।। सो कबारजी कहैं हैं कि, ये जीव ज्ञान करें हैं कि अज्ञान करे हैं ताहीको सब कुछ मानिकै आपने को सयान मानैहै तिनंसों कहा कहिये जो अपनी दृष्टिते देखत देखत भुलायादियो । स्मृतिवेद पुराण चक्रवर्ती परमपुरुष श्रीरामचन्द्रहीको कहैं। हैं, उनहींके भक्त हनुमान् बिभीषणादिक अमर भयेहैं, सो देखतेहैं औ यह नहीं समुझहैं कि, सबके मालिक बादशाह श्रीरामचद्र हैं, इनहीके छोडाये छूटेंगे औरके छोडाये न छूटेंगे ॥ ६ ॥ | इति चौदहवां शब्द समाप्त । अथ पन्द्रहवां शव्द ॥ १५॥ रामरा चली विनावन माहो। घर छोड़ेजात जोलाहो॥१॥ गज नौ गज दश गज उनइसकी पुरिया एक तनाई। सात सूत नौ गाड़ बहत्तर पाट लागु अधिकाई ॥ २ ॥ तापट तूल न गजन अमाई पैसन सेर अढ़ाई ।। तामें घटै वढे रातओ नहिं कर कच कर घरहाई ॥३॥ नित उठि वैठ खसम सों वरवस तापर लाग तिहाई। भीनी पुरिया काम न आवै जोलहा चला रिसाई ॥४॥ कहै कबीर सुनोहो संतो जिन्ह यह सृष्टि उपाई। छाड़ पसार रामभजु बौरे भवसागर कठिनाई ॥ ६॥ रामरा चली विनावन माहो। घर छोड़ जात जोलाहो॥१॥ | रामरा कहे रा जिनको मराहै अर्थात् रकार बीजको जिनके अभावहै साहबको नहीं जानें । ऐसेजे समष्टिजीव तिनके इहां माना है कारणरूपा माया सोविनावनको कहे बिनवावनको चली अर्थात् जगत् बनवाइबको चली । इहां