पृष्ठ:बीजक.djvu/२९४

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(२४४) बीजक कबीरदास । डाइनि डारे सोनहा डोरे सिंह रहे वन घेरे । पांच कुटुंब मिलि जूझन लागे वाजन बाज घनेरे ॥२॥ रोह मृगा संशय बन हाँकै पारथ वाना मेलै ।। सायर जरै सकल बन डाहै मक्ष अहेरा खेलै ॥ ३॥ कहै कबीर सुनो हो संतो जो यह पद निरधारै।। जो यहि पदको गाय विचारै आप तरै अरुतारै ॥४॥ एतत राम जपोहो प्राणी तुम बूझौ अकथ कहानी । जाको भाव होत हरि ऊपर जागत रैनि विहानी ॥ १॥ एतत कहे ई जे निर्गुण सगुणके परे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनको जपे। कैसे जपो कि, अकथ कहानी कहे मनबचनके परे जाह रामनाम सो बूझ अर्थात् रामनाममें साहबमुख अर्थ बूझिकै जप । श्रीरघुनाथ जीके ऊपर जाकों भाव होय है ताको यहसंसाररूपी जो है निशा बिहानई है जायहै; सोवतते जागिउठेहै । ताते यह ध्वनित होय है जाको रघुनाथजी के ऊपर भाव नहीं हैं। ताको यह संसार रूपी निशा बनी रहै बिहान नहीं होय है; जागै नहीं है। कहे ज्ञाननहीं होयहै; भ्रमरूपी निशामें सोवतै रहै है। यहीसंसारमें जीव कैसे घेरे रहते हैं सो कहै हैं ॥ १ ॥ डाइन डारे सोनहा डोरे सिंह रहे वन घेरे। पांच कुटुंव मिलि जूझन लागे बाजन वाज घनेरे ॥२॥ डाइनि जेहँ गुरुवालोग छालाके डारनेवाले ने वाके कानमें अपनी विद्याडारिदियो । इहां गुरुवालोग डाइंनि हैं ले सिंहको मंत्रते बाँधि देय वा बनत्याग और बननहीं जायैहैं । औ सोनहा जाहै सो हेहंसमंत्र तौनेमों हरा बांध्यो अर्थात् यह कह्यो कि; तूहींब्रह्महै और कहां खो नहै, तैवा है। यह मंत्रको अर्थबतायो सो सिंह जो है जीव या सामर्थ है सो उनही बाणीरूप बनमें घरि रह्यो कहे बँधिरह्यो तबपांचौ जे ज्ञानेन्द्रिय पांचौ जे कर्मेंद्रिय अथवा