पृष्ठ:बीजक.djvu/२९५

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शब्द। . ( २४५) पाचौ जे प्राण प्राण अपान समान उदान व्यान तैई कुटुम्ब हैं तिनमें मिलिकै जूझैलांग पांच कुटुम्ब सिंह के पंचआनन जब सिंहको मारन जाय है तब झुनका बाजा बनावै है तैसे यहां गुरुवालोग अनहद सुननकी युक्ति बतावनलगे सो दशौ अनहदकी धुनि सुननलग्यो तेई वाला हैं ॥ २ ॥ रोह मृगा संशय वन हाँकै पारथ वाना मेलै । सायरजरै सकल वन डाहे मच्छ अहेराखेलें ॥३॥ रोह कौनकहावै कि, जो कमरीमें आगीबारत जायहै झुनक बनावत जायहै तामें मृगा मोहि जायहैं सो वाहीकी छाया में पीछे धनुष बाणकी बांसकी बंदूकादि आयुध लिये खड़े रहै है शिकारी सोई मौरैहै यही हहै सो मृगराज जोहै जीव ताको गुरुवालोग जब योगाभ्यास कैकै धोखा ब्रह्मको प्रकाश बतायो तामेंरहिगयो कहे मोहिगयो जो कहौ हाँकि कौन लायो? तौ संशय रूप हँकबैया है। जैसे आगी बरत देखिकै वा बाजा सुनिकै टेममें माहिकै मृग मृगराज जार्य है या कैसो बाजा बाजै है या कैसी टेमहै या संशयन है ज्ञानमिलनकी चाह सो याको हाँकिले आयो ऐसे गुरुवा लोगनकी जोबताई बाणीबन है जौनअनहद सुनिबेकी युक्ति बतायो तीन अनहदकी धुनिसुनिकै औ जौन ज्योति बतायो सोऊ योगाभ्यास करिकै ज्योतिरूप ब्रह्म देखिकै जीव या संशय कैकै निकट जायेहै औ याबिचाचारै है कि, या ज्योतिरूप ब्रह्ममैहीं हौं कि, मोते भिन्न है तब शिकारी जैसे दुको रहेहै ऐसो मूलाज्ञान रूप शिकारी अहं ब्रह्मास्मि वृत्तिरूप बाण मारे बा जीवको अनुभव कराय देयँ कि, महीं ब्रह्महौं वाके जीवत्वको नाश कै देय यहीमारिबोहै ॥ औ जैसे बाण लागे मृग राजको अंतःकरण जर उठे है भधिक कोप है बनमें जोई आगे वृक्ष परैहै तौने पर चोर्ट करैहै, जो मारनवालेको देखे है तो वाहूको धीर खायहै ऐसे जब आपनेको ब्रह्ममान्यौ तबसायर जौ संसारहै सो जरैहै अर्थात संसार याको मिथ्या जानि परैहे औ बन डाई कहे वा दशामें बाणीरूप बन सोऊ भूलि जायहै । ऐसे बधिक मारयो बधिकको बाघ मारयो वधिकको जबमारिकै दोऊ गलिकै नदी में मिल्यो तब मछरी खायो । अथवा मारकै दोऊ बहैरहै कीड़ापरे जब बाढ़ को जल आयो तबमछरी खायों