पृष्ठ:बीजक.djvu/३२३

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शब्द। (२७३) हैं ने गुरुवा लेग नाना पदार्थनमें आग लगाइ देइहैं तिनहाते नहीं चलत वन है तो तिनको कह्या वचन कैसे कीजिये कहे कैसे मानिये ? अर्थात् उनके यहां न जाइये काहते कि, वे साहवा भुलाईंकै औरे में लगाइ देईंगे । संसार ही में फँसो रहे यामें धुनि यहहै कि, जे संसारते छूटे हैं रामोपासकहैं तिनहीं को वन मानिय तिनहीं के यहां जाइये ।। ४ ।। | इति इकतीसवां शब्द समाप्त ।। अथ बत्तीसवां शव्द ॥ ३२ ॥ हंसा ! चित चेतु सवेराइन्ह परपंच करल वहुतेरा ।।३।। पाखंड रूप रच्यो इन्ह तिरशुण यहि पाखंड भूल संसारा । छरोवसमवधिक भो राजा परजा काध करै विचारा।।२।। भक्ति न जाने भक्त कहावै तज्डि अम्वृत विष कैलिय सारा। आगे बड़े ऐसही भूले तिनहुं न मानल कहा हमारा ॥३॥ कहल हमार गांठी बांधो निशि वासर हि होहु हुशियाः । ये कलिके गुरुवड़ परपंची डारि ठगौरी सब जग मारा।।४।। वेद किताव दोय फेद पसारा ते फंदे पर आप विचारा ।। कह कवीर ते हंस न किछुड़े जेहिमैं मिल्यो छोड़ावनहारा हंसाहो चितचेतु सवेरा । इन्ह परपंच करल वहुतेरा ॥१॥ पाखंडरूप रच्यो इन्ह तिरगुण तेहि पाखंड भूल संसारा । घरको खसम वधिक भो राजा परजा काधौं करे, विचार २ हे हंसा जीवौ ! सवेरेते कहे तवहींते चित्तमें चेतकरौ । सबेरेते कह्यों ताको भाव यहहै कि, जब काल नियराइ आवैगो तब कछू न करत बनैगे। तिहारे फांसिबके। यह माया बहुत परपंच कियो है ॥ १ ॥ पहिले पाखंड