पृष्ठ:बीजक.djvu/३३३

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शब्छ । (२८३) योगी कहै योग है नीको द्वितिया और न भाई। चंडित मुंडित मौन जटा धरि तिनहुँ कहां सिधि पाई। ज्ञानी गुणी शूर कवि दाता ये जो कहहिं बड़ हमहीं । जहँसे उपजे तहँहि समान छूटिगये सब तवहीं ॥३॥ जिनके जिनको यह पदमें कहि आये तेते आपने मतको सिद्धांत करतभये कि, हमारही मत सिद्धांत । परन्तु रक्षकके विनाजाने जहां ते उपने तहैं। पुनि समाइ जातभये । अर्थात् जा गर्भत आये तनेही गर्भमें पुनि गये, जननमरज नहीं छुटै है । नत्र दूसरा अवतार लियो तव जौने जौने मतमें आगे सिद्धांद करिराख्यो तेने मन सब छूटिगये । अथवा जहांते उपजे कहे जौने लोक प्रकाशते उने में तहैं समाने महाप्रलयमें तब सब बिसरिगयो ॥ ३ ॥ वायें दहिने तजा विकारै निजुकै हरि पद गहियः ।। | कह कवीर गूंगे गुरखाया पूछेसों का कहिया ॥ ४ ॥ सो मंत्र शास्त्र में जे वाममार्ग दक्षिण मार्ग हैं ते दोऊ बिकारई हैं तिनक दुहुनको छोड़िदेड औ हरिजे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिहारे रक्षा करनवार तिनके पदको निनुकै कहे आपन मानिकै गहौ अथवा निनुकै कहे बिशेषिकै तिनके पदको गौ जो कहो उनको बताइदेउ वे कैसे हैं तो वे तौ मन बचनके परे हैं उनको कोई कैसे बताइसकै । जो उनको जान्यो है ताको गूंगे कैसे गुर भयो है कछू कहि नहिं सकै है इशारहिते बताते है । वेदशास्त्रको तात्पर्य कै जो सज्जनलोग साहबको समुझावै हैं सोतात्पर्य वृत्तिही करिकै बतावै हैं ऐसे तुमहूं जो भनन करोगे तो तुम उनको जानि लेउगे कि ऐसे हैं ॥ ४ ॥ | इति अड़तीसवां शब्द समाप्त ।। अथ उनतालीसवां शब्द ॥ ३९ ॥ | ऐसे हरिसों जगत लरतुहै। पंडर कतहूं गरुड़ धरतुहै।।१।। मूस विलारी कैसे हेतू । जम्बुककर केहरिसों खेतू ॥ २ ॥