पृष्ठ:बीजक.djvu/३४६

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( २९६) बीजके कबीरदास । अथ सैंतालीसवाँ शब्द ॥ १७ ॥ | पंडित बुझि पियो तुम पानी ।। जा माटीके घर में बैठे तामें सृष्टि समानी ॥ १ ॥ छपन कोटि यादव जहँ बिनशे मुनि जन सहस अठासी । पर परग पैगम्बर गाड़े ते सरि माटी मासी ॥ ३ ॥ मत्स्य कच्छ घरियार वियाने रुधिर नीर जल भरिया ।। नदिया नीर नरक बहि आवै पशु मानुष सव सरिया॥३॥ हाड़ झरी झर गूद गली गलि दूध कहाँते आवै । । तुम पाँड़े जेंवन वैठे मटिअहि छूति लगावै ॥ ४ ॥ वेद किताव छोड़ि दिडु पांडे ई सब मनके कर्मा ।। कहै कबीर सुनोहो पड़े हैं सब तुम्हरे धर्मा ॥॥ | जे दंभ करकै बड़ो आचार करैहैं जिनको चिअचिद साहब को रूप है। यहबुद्धि नहीं है ताको कहै हैं । पण्डित बूझि पियो तुम पानी।। जा माटीके घरमें बैठे तामें सृष्टि समानी॥ १ ॥ छपन कोटि यादव जहँ विनशे सुनि जन सहस अठासी। परग परग पैगम्बर गाड़े ते सरमाटी मासी ॥ २ ॥ सो हे पंडित! ज्ञानतो तिहारे है नहीं आचारकरौ हो सो तुम कहांको पानी पियौ है।भला बुझिकै कहे बिचारिकै तौ पानी पियौ। जीने माटीके घर में अर्थात् पृथ्वीमें तुम बैठेही तौनेमें सब सृष्टि समाइरही है ॥ १ ॥ औ जौनी पृथ्वीमें छप्पन कोटि यादव औ अठासी हजार मुनि ये उपलक्षण हैं अर्थात सबजीवनके शरीर वही माटी में मिलि मिलिंकै सारगये अरु परग परगमें पैगम्बर गाड़ेहैं