पृष्ठ:बीजक.djvu/३५७

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शब्द। (३०७) अथ तिर शब्द ॥५३॥ | गुरुमुख । वह विरवा चीन्है जो कोई जरा मरण रहितै तन होई॥१॥ विरवा एक सकल संसारापेड़ एक फूटल तिनडारा ॥२॥ मध्यकेडार चारि फल लागाशाखा पत्रगनतको वागा॥३॥ वेलि एक त्रिभुवन लपटानीवांधेते छूटिहि नहिं प्रानी॥४॥ कह कवीर हम जात पुकारा।पण्डित होय सो करै बिचारा ५६ वह विरवा चीन्है जो कोई।जरा मरण रहितै तन होई॥१॥ जो विरवाको आगे बर्णनकरै हैं ताको जो कोई चीन्है औ असार मानि लेड औ सार जो साहब तिनको जानै सोपार्षद स्वरूप द्वैजाइ औ जन्म मरणते रहित वैजाइ ॥ १ ॥ विरवा एक सकल संसारा। पेड़ एक फूटल तिन डारा॥२॥ मध्यके डार चारि फल लागाशाखा पत्र गनत कोवागा॥३॥ । सो एक बिरवा सब संसार है तैने बिरवाको पेड़ कहे मूल विराट् पुरुष है। तौनमें ब्रह्मा विष्णु महेश तीनिडार फुट्यो है ॥ २ ॥ सो मध्यकी डार ने विष्णु तिनमें अर्थ धर्म काम मोक्ष येचारि फल लागत भये चारि फलके देवेंया विष्णुह । सो जो कोई विष्णुको उपासक होइ सो चारों फल पावै है । डारन जो डरैया कहै हैं ते शाखा कहावै हैं । सो ब्रह्मा विष्णु महेश जे तीनि डोरै हैं तिनते नाना देव नाना मत भये। तेई शाखा हैं। तिनको को गनत बागहै अर्थात् उनको अन्त कोई नहीं पायो औ सतोगुणी रजोगुणी तमोगुणी जे नाना वासना होतभई तेई पत्र हैं ॥ ३ ॥ वेलि एक त्रिभुवन लपटानीबाँधे ते छूटिहि नाहिं प्रानी॥४॥ कह कवीर हम जात पुकारा।पंडित होय सो करै बिचारा ५॥