पृष्ठ:बीजक.djvu/३७९

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शब्द। ( ३३१) पाइकै ब्रह्म मायाकै परे मन बचन के परे परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्र हैं तिनको जाने है । सो भेरो कह्यो कोई नहीं मानै है वहीं धोखामें लगे है जो धोखाते जगत् होइहै कैसा होइ है कि ॥ १ ॥ गगनमँडल विच फुल यक फूलातिरभोडार उपर भोमूलार | गगन मंडल कहे लोक प्रकाश चैतन्याकाशमें एक फूल फूलत भयो कहे वह ब्रह्म माया सवलित होत भयो अर्थात् आकाश फल को मिथ्या कहै हैं सा वह मिथ्याही फूल भ्रमते फूलत भयो । जीवको भ्रम भयो ताके अनुमानते प्रकट है। नात भया । सो मूल तो वह ब्रह्म है सो ऊपर भयो औ तरे वाकी इरें फूटत भई चौदहें लोक संसाररूप वृक्ष तयार भयो ॥ २ जोतिये न बोइये सिचिये न सोइ । विन डार विना पात फूल यक होइ ॥ ३॥ फूल भल फुलल मालिनि भल गुंथल ।। फुलवा बिनशि गयो भवँर निरासल ॥ ४ ॥ | वह न जोति गयो न बोय गंयो औ न सीचि गयो बिना डर पाते। ऐसो बिरवा चैतन्याकाश जो लोक प्रकाश है तामें धोखा ब्रह्मरूप फूळ फूल्यो, ताहीते संसाररूप विरवा तैयार भयो ।। ३ ।। तब मालिनि जो मायाहै सो भल गूंथत भई कह फूल ब्रह्मको त्रिगुणात्मिका नाना वाणीसों खूब वर्णन करके वहीको आरोप करत भई । तब यहजीव सत्र छोड़िकै बही ब्रह्ममें नाना वाणी सुनिकै लग्यो से जब वहां कुछ न पायो वह धोखही द्वैगयो तब भवँर जो जीव सो निराश द्वैगया ॥ ४ ॥ कह कुवीर सुनो संतो भाई पंडित जन फुल रहे लोभाई ६ श्रीकवीर जी कहै हैं कि, हे संतो ! भाइउ सुने। वही ब्रह्मफूलमें पंडितजन जे हैं ते डोभाय रहे हैं । यह विचार नहीं करें हैं कि, जगत्का तो हम मिथ्यई कहह औं वही ब्रह्मते जगत्की उत्पत्ति कहै हैं । सांचते सांच झूठेते झूठा होइहै। सो वह ब्रह्मरूप फूल जो सांचो होतो तौ वासों झूठा जगद कैसे उत्पन्नं होतो ।