पृष्ठ:बीजक.djvu/३८८

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(३४०) बीजक कबीरदास । मूल रकार बीजहै जो सबको परम कारण है सबते पर है सो याही राम नामको जो कोई साहबमुख अर्थ कारकै नपैगो सोई परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्र के पास जाइगो और नहीं तैरै हैं ॥ ४ ॥ इति सरसठवां शब्द समाप्त । अथ अड़सठवां शब्द ॥६८॥ | जो चरखा जरिजाय बढ़ेया ना मेरै । मैं कातौं सूत हजार चरुखला ना जरै ॥ १ ॥ वावा ब्याह करायदे अच्छा बर हित काह। अच्छा वर जो ना मिलै तुमहीं मोहिं विवाह ॥२॥ प्रथमें नगर पहुंचतै परिगो शोक सँताप । एक अचंभौ हौं देखा बेटी ब्याहै बाप ॥ ३ ॥ समधी के घर लमधी आया आये बहूके भाइ । गोड़ चुल्हौने दैरहे चरखा दियो डढाइ ॥४॥ देवलोक मार जाहिंगे एक न मेरै बढ़ाय।। यह मन रंजन कारने चरखा दियो दृढ़ाय ॥ ९॥ कह कवीर संतो सुनोचरखा लखै न कोइ । जाको चरखा लाखपरो आवागमन न होइ ॥६॥ नाना उपासना में लगे जीव संसारते नहीं छूटेहैं सो काहेने नहीं छुटे हैं। सोकहैहैं । जो चरखा जरिजाय वढ्या ना मरे । मैं कातौं सूत हजार चरुखला ना जरै ॥ १ ॥