पृष्ठ:बीजक.djvu/३९७

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शब्द। । (३४९ ) जारे देह भसम वैजाई गाड़े माटी खाई । शूकर श्वान कागके भोजन तनकी यह वड़ाई ॥३॥ चेति न देखु मुगुध नर वौरे तूते काल न दूरी ।। कोटिन यतन करें वहुतेरे तनकी अवस्था धूरी ॥४॥ अरु ये पदनको अर्थ स्पष्टें है इनमें यही बर्णन करहैं कि मायाकी फौज ताको लूटिलियो अथवा शरीररूपी बड़ा तेरो चलाया न चल्यो संसार सागर कामादिक तोको बोरि दिया काल दुरि नहींह आखिर मरही जाहुगे तनकी अवस्था दूरिही है आखिर रिहा में मिलिजाइगो ॥ ३ ॥ ४ ॥ बालूके घरवामें बैठे चेतन नाहिं अयाना । कह कवीर यक राम भजे विन वृड़े बहुत सयाना॥५॥ श्री कबीर जी कहे हैं कि यही शरीररूप बालूके घरमें वैठिकै अरे मुटु चेतत नहीं है परम पुरुषपर श्री रामचन्द्रको भजन नहीं करै हैं न जाने यह शरीर कव गिरिजाइ कहे छुटिनाई सो विषय छोड़ि वेगिही भजनकरु वे समर्थ तोको छोड़ाइ लेइंगे सावके भजन बिना बहुत सयान मतनमें लगिकै बुड़िगये अर्थात् मायाते छोड़ाय लीवे में समर्थ साहबहीं हैं और कोई न छोड़ाय सुकैगो तेहिते परम पुरुषपर श्रीरामचन्द्रको भजन करु वे तोको संसारते छोड़ायही देईगे ॥ ५ ॥ इति वदनरव शब्द समाप्त । अथ तिहत्तरवां शब्द ॥७३॥ | फिरहु का फूले फूले फूले। | जो दश मास अधो मुख झूले सो दिन काहेक भूले ॥ १ ॥ ज्यों माखी स्वादै लहि विहरै शोचि शोचि धन कीन्हा । त्यौहीं पीछे लेहु लेहु कर भूत रहनि कछुदीन्हा ॥ २ ॥