पृष्ठ:बीजक.djvu/४१

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                      रमैनी ।

परेसोजालजगतकेफेर ॥ पैच तीन णजगउपजाया ॥ सोमा यानंब्रह्मनिकाया ॥ उपजे खपेजगविस्तार ॥ भैसाक्षीसब जाना निहारा॥ मोक जानिसकेन हिंकोय ॥ जोपैविधिहरिशं करहय ॥ अस सान्धिककीपरी बिकार । बिडगुरूकृपानहोय। उवार ॥ मग्न ब्रह्मसंधिककेझान ॥ असजानिअबभयाधमहान ॥ साक्षी ॥ संधिशब्दहेभर्ममो, भूलिरहा ‘कितलोग । पर वेउधोखाभेर्धनहैिं, अंतहोतबड़. हैोग ॥ ७ ॥ रमैनी ॥ जोकोइ संधिकधोखाजान ॥ सोपुनिउलटि कियोअनुमान ॥ मनबुद्धिइन्द्रियजायनजान । निर्मोबचनीसोसदाअमान ॥ अंकल जैनीह बाध औभद ॥ नेतिौतिगाबेवेद ॥ सोई धृत्ति अखण्डितरहै ॥ एकदोयअबकोतहांकहै ॥ जानिपरी तब नित्याकार ॥ झांई सो भ्रममहाबेकार ॥ साक्षी ॥ संभव शब्दअमानजो, झांईप्रथम बेकार ॥ परखेड धोखा भवनिज, गुरुकी दयाउवार ८॥ रमैनी ॥ पहिले एकशब्द समुदाय ॥ बाबनरूपधरेछितराय ॥ इच्छा नारिधतेहिश तालेब्रह्मा विष्णमहेश ॥ चारिड उरपुरबावनजागे ॥ पंच अठ रहकंठाहिलागे ॥ तालू पंचशून्यसोआय ॥ दश्र सनाके पूत कहायपांचअधर अधरहीमारहै।शुन्नेकंठसमोधेवहै। ठ- लेप्रगटे ठौर ॥ बोलनलागे ऑरकेऔर ॥ साक्षी ॥ एक शब्द समुदायजो, जामेचार प्रकार ॥ कालशब्द सैं.

५१ पांचतत्व ॥ देखों रमैनी ३। १० इत्यादि ॥ ५३ कहां 7 ५४ गेंद ॥ ५५ शोक दुख॥ ५६ कहने में जो नहीं आये ॥ ५७ कछा अंश रहित ॥ ५८ इच्छा रहित ५५ बाद रहित ॥ ६० नंद रहित ॥ ६१ लगन, ख्याल, सुरत ॥ ६२ सत्य रूप ॥