पृष्ठ:बीजक.djvu/४१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

शब्द । ( ३६९) सुनीति कराय तुरुक जो होना औरत की का कहिये। अर्द्धशरीरी नारि वखानै ताते हिंदू रहिये ॥ ३ ॥ घालि जनेऊ ब्राह्मण होना मेहरीको क्या पहिराया। वो तौ जन्म कि शूद्रनि परुसा सो तुम पांड़े क्यों खाया॥ हिंदू तुरुक कहते आया किन यह राह चलाई । दिलमें खोज खोजु दिलहीमें भिश्त कहां किन पाई ॥६॥ | कहै कबीर सुनोहो संतो जोर करतुहौ भारी । कविरन ओट रामकी पकरी अंत चला पचिहारी ॥६॥ काजी तुम कौन किताव बखाना। आँखत वकत रहौ निशिवासर मति एकौ नहिं जाना॥ १॥ हे काजी ! तुम कौन किताब को बखानत रहौंहै। निशिबासर वही किताबको वकत रहौहौ अरु बाहीमें झंखत कहे शंका करत रहौहौ सो कुरान किताब तात्पर्यते जो एक साहबको बर्णन करै है ताको जो तुम्हारी मति न जानत भई तौ तुम कुरान किताबकी एकऊ बस्तु न जानत भये ॥ १ ॥ शक्ति न माने सुनति करतही मैं न बदौंगा भाई । जो खोदाय तुव सुनति करति तौ आपु काटि किन आई२॥ घालि जनेऊ ब्राह्मण होना मेहरी को क्या पहिराया । वोतो जन्म की शूद्विान परुसा सो तुम पांड़े क्यों खाया३॥ | सुनति किये जो मानतेहौ कि,हम मुसलमान हैं औ या नहीं मानते है कि, शाक्त जो माया सोई करैहै सो हे भाई ! मैं न बदौंगा जो खोदाय तेरी सुनति करतो ती पेटही ते कटी आउती ॥ २ ॥ सो हे पंडित ! अपनी आत्माको साहबकी शक्ति न मान्यो । अरु ब्रह्मसाहबको न जान्यो जनेऊ पाहारकै तुमतों ब्राह्मणभये औ अपनी मेहरीको कहा पहिरायैहै जाते वह ब्राह्मण भई सो