पृष्ठ:बीजक.djvu/४१८

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(३७० ) बीजक कबीरदास । तिहारी स्त्री तो जन्मका अदिनिहै सो परुसैहै औ हे पड़े ! तुम खाउहौ ताते तुम कैसे ब्राह्मण भये ब्राह्मण तौ ब्रह्म जानेते कहावै ॥ ३ ॥ हिन्दू तुरुक कहांते आया किन यह राह चलाई । दिलमें खोज खोजु दिलहीमें भिश्त कहां किन पाई॥४॥ | आत्माते एकइहै हिंदू तुरुक ये शरीरके भेदहैं यह शरीर कहाँ ते आयोहैं। औ यह राह कौन चलायो है अर्थात् बीचैते आये हैं बीचैते जायेंगे सो दिलमें तुम खाजै उसका खोज दिलही में है औ कौन भिश्त पायों है अर्थात् खोदायका बंदा जो तिहारो जीवात्मा है जो हिंदू तुरुकमें एकई है सो तिहारे दिल है उसके जानो तो जानि पैरै उसके मिलनको खोज कहे राह वही आत्माहै जब आपने स्वरूपको जानोगे तब चाको पावोगे ॥ ४ ॥ कहै कबीर सुनो हो संतो जोर करतु है भारी ।। कविरन ओट रामकी पकरी अंत चला पचिहारी ॥८॥ कबीरजी कहैहैं कि हे संतौ! सुनौ यह जीव आपने छूट जाइब को बड़ानोंर करैहै कहे बहुत उपाय करै है नाना मतन करिकै ते कबार काया के बीर में जीव ते औरे औरे मतनमें लगिकै राम अल्लाह के ओट कै और पकरत भये कहे और २ जे मत ते राम अल्लाह के ओट कै देनबारे हैं तिनको पकरिकै अथवा कबीर जे जीव ते रामकी ओट नं पकरत भये अर्थात् आपने जीवात्माको साहबको बंदा न जानत भये राम अल्लाहको बिसरि गये ताते अंतमें पचिकै कहे मरिकै अरु वे मतनत हारिकै चळेगये। जो यह मानि राख्या हैं कि हमको स्वर्ग बिहिश्त होइ हम ब्रह्म होइँगे सो एकऊ न भये नौन कर्म का राख्यो तैसोई कर्म नरक स्वर्गनमें भोग करन लग्यो ॥ ५ ॥ इति चौरासीवां शब्द समाप्त ।।