पृष्ठ:बीजक.djvu/४१९

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शब्द । (३७१) अथ पचासीवां शब्द ॥ ५ ॥ भूला लोग कहै घर मेरा ।। जा वर वामें फूला डोलै सो घर नाहीं तेरा ॥ १ ॥ हाथी घोडा बैल वाहनो संग्रह कियो घनेरा ।। वस्तीमें से दियो खदेरी जंगल कियो वसेरा ॥ २॥ गांठी वांधी खरच न पठ्यो बहुरि कियो नहिं फेरा। बीवी बाहर हरम महलमें बीच मियाँको डेरा॥ ३॥ नौ मन सूत अरुझि नहिं सुरझै जन्म २ अरुझेरा । कहै कबीर मुनो हो संतौ यहि पद करो निवेरा॥४॥ भूला लोग कहै घर मेरा । जा घरवा में फूला डोले सो घर नाहीं तेरा ॥१॥ साहबको पार्षदरूप जो है हंसस्वरूप आपने सांच शरीर ताको भूले लोग कहैं कि यह मिथ्या जो स्थूलशरीर सो हमारोहै सोजा घर स्थूल शरीरमें हैं फूलाडोलै है मेरो शरीरहै सो तेरा घर कहे शरीर नहीं है ॥ १ ॥ हाथी घोडा बैल बाहनो संग्रह कियो घनेरा। बस्ती मेंसे दियो खदेरी जंगल कियो बसेरा ॥२॥ गांठी बांधी खरच न पठ्यो बहार कियो नहिं फेरा । बीबी बाहर हरम महल में बीच मियां को डेरा ॥ ३॥ | बहुत हाथी घोड़े बैल इत्यादिक बाहनको संग्रह कियो परंतु जब मैं शरीर रूपी बस्तीते खदेरि जाइगो कहे शरीर छूट जाइगो तब जंगलमें कहीं पीपर के तर भूत द्वैके बसेर कहे बास करैगो अरु वह शरीरहूको बाहर खदेरिलै श्मशानमें जारि देईंगे तब वह हाथी घोड़े औरहीके है जाइँगे ॥ २ ॥ गांठी बांधिधरयो अरु खर्च न पठयो कहे पुण्य न कियो जो वह लोकमें मिलिंकै बहुरिकै