पृष्ठ:बीजक.djvu/४२६

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(३७८) बीजक कबीरदास । षट चक्र बेधि कमल बेध्यो जब जाइ उज्यारी कीन्हा।। काम क्रोध अरु लोभ मोह ये हांकि साउजन दीन्हा॥३॥ | गगन मध्य रोक्यो सो द्वारा जहां दिवस नहिं राती ।। दास कबीर जाय सो पहुँच्यो सव बिछुरे संग सँघाती॥४॥ कविरा तेरो घर कंदुलमें मनै अहेरा खेले। बथुवारी आनंद मीर्गा रुची रुची शरमेलै ॥१॥ कबीरजी कहै हैं कि हे कबीर ! कहे कायाके बीरजीव तेरोघर कंदलामें है। कहे आनंदको कंद कहे सार जो साहबको धाम है तहां है। जो कहो संसार कैसे भयो तौ तेरोबपु शिकारी बपुरी जो है नाना शरीर तेई वारी हैं। शिकारी जहां हाँकै है सो वारी कहावै है।तहां जाईंकै बिषयानंद ब्रह्मानंद जे हैं मुगाको शिकार खेले हैं कोई विषयानंदरूप मृगामें वृत्ति शर मारि भोग कैरै हैं कोई शिकारी मन ब्रह्मानंदरूप मृगाको वृत्ति शर मारि भोग करै हैं ॥ १ ॥ चेतत रावल पावन पंढा सहजहि मूलै बांधै। ध्यान धनुष धरि ज्ञानवान बन योग सार शर साथै २॥ षट चक्र बेधि कमल बेच्यो जब जाइ उज्यारी कीन्हा। काम क्रोध अरु लोभ मोह ये हॉकिं साजन दीन्हा ३ जो शिकार खेलबो कैसे छूटै यो मनको तौ रावल कहे सबके राजा ताक पावन कहे पायनको चेत करत कहे स्मरण करत अथवा पावन कहे पवित्र हैकै पंढ कहे नपुंसक ब्रह्म तद्रूप जो जीव सो सहज समाधि लगाईकै मूलबंध करै यहै ध्यान जाहै धनुष तौनेको धरिकै साहब में आत्मा को लगाय दीबो जो बाण यही योगसार रूप शर साथै ॥ २ ॥ सोई योग बताबै हैं। जे हठ योग करै हैं ते कुंडलिनी उठायकै छइउ चक बेधै हैं इहां कुछ कुंडलिं नी उठाइबेको प्रयोजन नहीं है वह जो ब्रह्म ज्योतिकारकी मूलाधार चक्रते है ब्रह्मांड है साकेतमें लगीहै सो छइउ चक्र को बेधिकै लगी है सुषुम्णा नाड़ी