पृष्ठ:बीजक.djvu/४४६

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( ३९८) बीजक कबीरदास । जिन दुनियामें रची मसीद । झूठी रोजा झूठी ईद ॥ ४ ॥ सांच एक अल्लाःको नामाताको नय नय करो सलाम॥६॥ कहुधौं भिश्त कहाँते आई।किसके कहे तुम छुरी चलाई६॥ अरु जीव निन संसार में मसीद जो मसजिद शरीर रच्येहै ते कतरी नहीं रहे ॥ ४ ॥ सांच एक मन बचन के परे अल्लाको नामहै ताको नये नयकै सलाम करो और सब झूठा है जिसके बनाये भिश्त भईहै तेऊ वही नामते प्रकट भये हैं तुम किसके कहे जीव मारते हौ ई सब झूठे हैं ॥५॥ ६ ॥ करता किरतिम बाजी लाई। हिंदु तुरुक दुइ राह चलाई कहूँ तबदिवस कहाँ तव राती।कहँतवकिरतिमकीउतपाती नहिंवाकेजाति नहींवाकेपातीक हैकवीरवाके दिवसनराती सो कता कै कृत्रिम जो माया है सो बाजी लगायकै दुइ राह चलाइहै॥७॥ जब प्रथम साहब सुरत दिया है तब कहां दिन रह्योहै कहां राति रही कहां कृत्रिम जे माया ताकी उत्पत्ति रही है ? न वाके कछु जाति है जो कहिये, वा ब्रह्म है, मायामें है, सचित है तै वा एकऊमें नहीं है । न जाति है वाके एकई साहब हैं दुइ चारि साहब नहीं हैं न वाके दिवस है न राति है। कहे ज्ञान है न अज्ञान है ताते हबके सांच नाम जप ॥ ८ ॥ ९ ॥ इति अट्टनवे शब्द समाप्त । - अथ निज्ञानबे शब्द ॥ ९९ ॥ अब कहँ चल्यो अकेले मिंताउठिकिनकरघरकीचिंता खीर खड़ घृत पिंड समारा ।सो तन लै बाहर के डारा॥२॥ जेहि शिररचिरचिवांध्योपागासोशिररतनविदाराहंकागाई हाड़ जरै जस लकड़ीझुरीकेश जरैजस तृणकै कूरी ॥४॥