पृष्ठ:बीजक.djvu/४४७

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शब्द।। (३९९), आवत संग न जातको साथी ।काह भयो दल साजे हाथी ५ मायाको रस लेइ न पाया। अंतर यम विलार है धाया६ कहकवीरनरअजहुँनजागाोयमकोमोंगरामधिशिरलागा ७ श्री कबीरजी कहै हैं कि, हे जीवौ ! जैसो या पदमें कहि आये हैं तैसा तिहारो हवाल द्वै रह्यो है । जो तुम परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्रको नै जानौगे तौ तिहारे शिरमें यमको मोगदरलगैगो ॥१॥ ७ ॥ इति निन्नानवे शब्द समाप्त । अथ सौ शब्द ॥ १०० ॥ देखौ लोग हरिकी सगाई । माय धेरै पुत धिय संग जाई। सासु ननदि मिलि अदल चलाई।मादरिया गृह बेटी जाई२ हम बहनोइराम मोर सारा । महिं बाप हरि पुत्र हमारा ३ कहै कबीर हरीके बूता । राम रमैतै कुकुर के पूता ॥ ४॥ | हे जीवो ! सब संसारकी सगाई न देखे। दुःखकै हरैया ने हरि हैं। तिनकी सगाई देखो । अर्थात् साहबमें लागो तो वे संसार दुःख दूर कर देइंगे । जो संसारमें लागोगे तो माई जो माया सो तुमको धरैगी तुम जीवो वा मायाको पुत्र हैं रह्यो है । समष्टि ते व्यष्टि जीव मायाही कहै याते. मायाको माय कह्या है अब जीवके बुद्धि उत्पन्न होयहै यात जीवकी धी कहे कन्या है । सो रौं बुद्धि संग बिगार गयो और और में बुद्धि निश्चय कराई नरकमें डारि दियो । १ ।। बुद्धि कर्म की बासना ते उत्पत्ति होय है जनै प्रकारकी बासना होय है तैसी बुद्धि होइ है सो बासना जीवकी सासु है औ जीवकी सुरति बहिनी है काहेते कि, वही सुरति पाइकै जीव चैतन्य भयो है संसारी भयो है । वह सुरति जब साहब मुख होइगी तब साहब को पावैगो सो ये जे हैं बुद्धि की सासु ननँदि हैं तेई अदल जो हैं हुकुमसो चलाइकै शुद्ध समष्टि