पृष्ठ:बीजक.djvu/४५

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                      रमैनी । 

वार ॥ १६॥ रमैनी में नवदरवाजाभरमविलास ॥ भरमहिवावनबहेवतास ॥ कैनउजबावनभूतसमान ॥ कहं लागगनी सौ प्रथमउड़ान ॥ माया ब्रह्मजीवअनुमान ॥ मानतही मालेक बौरान ॥ अकृषकभूतवके परचंड । व्यापि रहा सकलो ब्रह्मद्ध ॥ ई भर्म भूत की अकथकहानी ॥ १°गीत्यजीवजहोनहिपानी ॥ तनकतनकपरदौरे बौरा ॥ जहांजायेतहपावेनठौरा ॥ साक्षी ॥ योगी रोगीभक्तबावरा, ज्ञानीफिरे निखट्ट ॥ संसारीको चैन नहींहै, ज्योंसरांयकाटटू ॥ १७ रमैनी ॥ इतउँतदौरेसबससार ॥ छुटेनभरमकियाउपचार ॥ जरेजीवकोबहुरिजरावै ॥ काटे ऊपर लोनलगावै ॥ योगी ऐसी हालबनाई ॥ उलटी वत्ती नाक चलाई ॥ केइविभूत्तिमृगछालाडारे॥ अगमपन्थकी राहनिहारे ॥ काहूको जलमांझसुतावै ॥ कहरतहीं सबरैनगंवावै ॥ भगती नारी कीन शृंगार ॥ बिन प्रिया परचै सबै अंगार ॥ एकगर्भ ज्ञानअनुमान ॥ नारि पुरुषकाभेदनजान ॥ संसारीकहूँकलनहिपावे ॥ कैहरतजगजीवगवावे ॥ चारिदिशामें मंत्रीझैौरे ॥ लियेपलीतामुलनाहारे । जरैनभूतबड़ी वरिधारा ॥ काजी पण्डित [ पचिपचि ] पढ़ पढ़ हारा ॥ इन दोनोंपरएकै भूत ॥ झारेंगे क्यामाकी चूत ॥ साक्षी ॥ भूतनउतरे भूतसों, सन्तो करोविचार ॥ ककवीरपुकारिके, बिनुगुरु नहिंनिस्तार॥ साक्षी॥परमप्रकाश भसजो, होत 'प्रीडाविशेष॥ तद प्रकाश

१०६ अक्षर १०७ डुबाया ॥ १०८ उदास ॥ १०९ सुख ॥ ११० यहां बवां ॥ १११ नेती धोती बाहर कराता है ॥११२ हाय २ करते २॥ ११३ पंडित लोग ॥ ११४ मजबूत बलीबलवान ॥ ११५ अध्यास ॥ ११६ दृढ़ ।