पृष्ठ:बीजक.djvu/४५०

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(४०३) बजिक कबीरदास ।। श्रीकबीरजी कहै हैं कि जो कोई यह पदको है हैं जौने के प्रकाश यह ब्रह्म है ऐसो जो साकेत है तौने पदको कहे स्थान को जो जानै तौ प्रमाणिक संत वही है औ जेहिका प्रकाश या ब्रह्म है तैौने धाममें जायकै पुनि नहीं लौट आई हैं तारों प्रमाण ॥ न तद्भासयते सूर्यं न शशांको न पावकः । यद्गत्वा न निवर्तते तद्धाम परमं मम ॥ तामें कबीरऊ जीको प्रमाण ।। ‘‘कालहि जीति हंस लै जाहीं। अविचल देश पुरुष जहँ आहीं ॥ तहां जाय सुख होइ अारा । बहुरि न आवै यहि संसारा? ॥ ६ ॥ इति एकसै एक शब्द समाप्त ।। अथ एसेदो छ । १०२।। होदारी की लैदेउँ तोहिं गारी।तुम समझु सुपंथ बिचारी१।। घरकूको नाह जो अपना । तिनहूँ सो भेट न सपना ॥२॥ ब्राह्मण औ क्षत्री वानी । सो तिनहूँ कहल न मानी ।। ३ ॥ योगी ॐ जङ्गम जेते । वे आप गये हैं तेते ॥ ४ ॥ कहै कबीर यक योगी । तुम भ्रमी भ्रमी भो भो ॥ ६॥ होदारी!की लै देउँ तोहिंगरीतुम समुझु सुपंथ विचारी॥१॥ घरहूको नाह जो अपना। तिनहूँ सों भेट न सपना |२॥ ब्राह्मण औ क्षत्री बानी । सो तिनहूँ कहल न मान ३॥ हो दारी कहे बांदी की बंची जीवशक्ति तोको गारी देइहैं। मैं यह मायाकी बच्ची बँकै मायाही में लग रही है तो यह माया दारी है। जो सबको दारि डारै सो दारी कहाँवै है सो तोको दरे डोरै है यही के ये पेटते निकसे यही में लगे यह कुपंथ है सो तें सुपंथ बिचारु ॥१॥ घरके नाह जे परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्र अपना है तासों सपनेहूं नहीं भेट करै है तौं योग ज्ञान उपासनादिकन में जो नाह बर्णन किये हैं तेत जारं हैं जो तोक मिलिबो करेंगे दश दिनको तौ फेरि