पृष्ठ:बीजक.djvu/४५६

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६ ४८८) बीजक कबीरदास । दुलहादेव भैरव भवानी ग्रामदेवता ई सब भ्रमहैं ई सब जगत् को खाये लैइहैं जिन जिन इनको पूजाहै तिनको तिनको जहड़ाइवो कहे वह काल देइहै || १ || येई देव तिनके नाअंड है ना पिंडहै इनको अनेक जीव काटि काटि दिया सो काह जानिकै दियो तुमको बैकलाइ डारेंगे फल ना देईंगे ।। ३ || बकरी मुर्गी देकै जो तुम इनको पूजा कीन्ह सोई आगिले जन्म तुम्हारो गर काटेंगे ॥ ३ ॥ सो श्री कबारजी हैं हे लोगो ! तुम सुनौ ये भूतनको जो तुम पूजौगे तौ तुमहूं भूत होउगेभूतके पूजेते भूत होइहै तामें प्रमाण } ** यांति देवव्रता देवान् पितृन् यांति पितृव्रताः । भूतानि यति भूतेज्या योनि मद्या ननापि काम ?' ।। इतिगीतायाम् ॥ ४ ॥ | इति एकसे पांच शब्द समाप्त है। अथ एक छः शब्द । १०६ ।। भवैर उड़े वक् वैठे आय। रौनि गई दिवसौ चलि जाय ॥१॥ हल हल कांपै बाला जीव । ना जाने का करिहैं पीव ॥ २॥ | कूचे वासन टिके न पानी । उड़िगे हँस काय कुम्हलानी३ | का उड़ावत भुजा पिरानी।कह कबीर वह कथा सिरानी भर उड़े वक बैठे आय। रैनि गई दिवसौ चाल जाय॥१॥ इल हल कांपै बालाजीव । ना जाने का कारिहै थी। २।। | यह जगत्में यह दशा द्वैगई कि भर जेहैं रासक संत जे परम पुरुष पर श्री रामचन्द्र प्रेममें छके रहै हैं ते उड़िगये कहे उठिगये अरु बक जेहैं। गुरुवा लोग ते बैठे आय जैसे बकुला मछरी खायहै तैसे ठगि ठगिकै दको स्वस्वरूप वाइलेइहै कहे भुलाइ देइहै वही ब्रह्ममें लगाइकै ।। १ ।। सोयह जीव तैः बाला स्त्रीकहे परम पुरुष श्री रामचन्द्र की चितशक्ति है सो ब्रह्म शेखामें लागकै हलहल काँपै है अर्थात मैं अपने स्वामीको भुलायकै धोखा ब्रह्ममें लग्यो सो हाथ न लग्यो सो ना जानौं खफा द्वैकै मेरे एड कहे स्वामी अब कहा करेंगे ।। २ ।।