पृष्ठ:बीजक.djvu/४५७

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शब्द । ६ ४०९) कच्चे वासन टिकैन पानी। उड़गो हंस काय कुम्हलानी३ काग उड़ावत भुजा पिरानीकह कबीर यह कथा सिरानी ४ सा उमिरि तो वह ब्रह्ममें व्यतीत कै दियो औ हाथ कुछ न लग्यो तब यह विचारचो कि मैं अपने स्वामी जे परम पुरुष श्रीरामचंद्र हैं तिनमें लग स जैसे कच्चे बासनमें पानी धार देइ तौ बासन कच्चा बिगसि जाय है तैसे यह शरीरतो रहैं नहीं है जब हंस उड़िगयो शरीर कुम्हिलाइ गयो कहे छूटियों था। यहहै तब पंछितावई हाथ रहि नायौ ॥ ३ ।। श्री बार जी कहै हैं। कि जैसे नारी अपने पतिकै आइबेको भुनाते काग उड़ावै है जब पति नहीं आवै है तब भुजाको पिरावई रहि जाइ है तैसे ब्रह्म वैये के लिये उमिरि बिताइ दियो अहं ब्रह्म अहं ब्रह्म करत करत वह सब का सिराई गई कहे जिन जिन ब्रह्म भये उनको ब्रह्म न मिल्यो तब मेहनतई हाथ रहि जाइहै जैसे भूसीके खड़े कुछ हाथ नहीं लगे है मेहनतई हाथ रहिजाई है वैसे इनको बिना परम पुरुष श्रीरामचन्द्र जाने ब्रह्म है जाइबो भूसई कैसो खड़िबो है। उहां कुछ हाथ नहीं लगै है तामें प्रमाण ॥ “श्रेयः स्तुतिर्भक्तिमुस्य ते विभों क्लिश्यन्ति थे केवळबोधलब्धये ॥ तेषामसौ क्लेशल एव शिष्यते नान्यद्यथा स्थूलतुषाववातिनाम् ॥ १ इतिभागवते ॥ ४ ॥ इति एकसैछः शब्द समाप्त । अथ एकसै सात शब्द ॥ १०७।। वसम विन तेली के वैलभयो । बैठत नाहिं साधुकी संगति नाधे जन्म गयो ॥ ३ ॥ बहि वहि मेरै पचै निज स्वारथ यमके दण्ड सह्यो । धन दारा लुत राज काज हित माथे भार गह्यो ॥ २॥ रखमहिं छोड़ि विषयसँग माते पापके बीज वयो। झूठ मुक्ति नर आश जिवनकी प्रेतको जूठ क्यो ॥ ३ ॥