पृष्ठ:बीजक.djvu/४५८

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(४१०) बीजक कबीरदास । लख चौरासी जीव योनिमें सायर जात वह्यो । कहै कबीरै सुनौहो संतौ श्वान कि पूंछ गह्यो ॥ ४॥ | खसम बिन तेलीके वैलभयो । बैठत नाहिं साधुकी संगति नाधे जन्म गयो ॥ १ ॥ बहि वहि मरै पचै निज स्वारथ यमके दंड सह्यो । धन दारा सुत राज काज हित माथे भर गयो ॥ २॥ श्री कबीरजी जीवको उपदेश करै हैं हैं जीव ! तेरे मालिक ने रामचन्द्र हैं। तिनही बिना तेलीको बैल भयो जे साधु तेरो स्वरूप बताइदेईं ऐसे साधुनकी सङ्गति में कब नहीं बैठे तेलीके बैलकी नाई नाधे नाधे जन्म व्यतीत भयो जन्मते मरद रह्यो ॥ १ ॥ जब कांधे जुबां नाधि जायहै तब निज तेलीके निमित्त दोई ढोइ मरै है जो ना रेगें ती तेली डंडा मारै है तैसे यह जीव धन दारा सुत राज काजके हितं नाना कर्म करै है इंद्रियसुख लिये बहिं बहि कहे नाना कर्मनको भारा टोइ टोइकै पचै है अरु अंतमें यमदंड माँरै हैं सो सहै। हौ याही रीति जन्म जन्म यमदंड सही हौ ।। २ ।। खसमहिं छोड़ि विषय रँग माते पापके वीजक्यो । | झूठ मुक्ति नर आश जिवनकी प्रेतको जूठ वयो ।।३।। खसम जे साहब तिनको त्यागि विषय रंगमें मात्यो औ पापको बाज बोवत भयो अर्थात् जो नारी आपने खसमको छोड़ि और पुरुषमें लगे है तौ वाको बड़े पाप होयहै सोते खसमको छोड़िकै नाना देवतनकी उपासनामें लोग जात भयो मातिगयो सो हैं महापाप के बाजबोयो औ नरन को व्यावनवारी जो मुक्तिकी जो हमको उपास्य देवता प्राप्त होयेंगे तो हम जीते रहैंगे हमारों जनन मरण न होयगो सो वह मुक्ति झूठी है जौने शरीरते उनके लोकको जायगों सो तन नाश लै जाइगो जब फेरि सृष्टि समय होइगो तक वाई देवनके साथ फिर अवैगो जनन मरण न छूटैगो सो ऐसी झूठी मुक्तिके वास्ते