पृष्ठ:बीजक.djvu/४८

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                   रमैनी ।
                                     (४६ )

पहिरे चीर॥युग युग नाचे दास कैवीर ॥ २१ ॥ रमैनी ॥भासे जीवरूप सो एक ॥ तेही भास के रूप अनेक ॥ कोई मैगन रूप लौलीन ॥ कोइ अरूप ईश्वर भन दीन ॥ कोई कहै कर्मरूप है सोय ॥ शब्द निरूपन करे पुनि कोय ॥ समय रूप कोई भगवान ॥ कर्ता न्यारा कोई अनुमान । कोई कहै ईश्वर ज्योतिहिं जान ॥ आतम को कोई स्वतः बखान ॥ कोई कहै सब घुनि सबते न्यारा ॥ आपै राम विश्व विस्ता‘रा ॥ शव्द व कोई अनुमान ॥ अद्वै रूप मैंई पहिचान ॥ दु“दुग रही को बोलै बात ॥ बोलतही सब्य तत्व नशात ॥ बोल बोल लखे पुनि कोय ॥ भास जीव नहिं पर सेवा ॥ साक्षी ॥ निज अँध्यास झांई अहै, सोसंधिक भौभास ॥ प्रथम अनुहा कल्पना, सदा करे परका १३ २६ । मैन। लख चौराशी योनि जैते ॥ देही बुद्धि जानिये तेते ॥ जह जैहि भास सोई सोइ रूप ॥ निश्चै किया पर भवकृपं ॥ नान भांति विषय रस लीन । अरूझि २ जिव म्विथा दीन । दवा विषैर्य जरै सब लोय ॥ बांचा चहै गहै पुनि सोय ॥दृढ़ विश्वास भरोसा राम ॥ कबहूँ तो वे अवै क्षय ॥ विषै। विकार मांझ संग्राम में राम खटोला कि 'इन ।। घायल बिना तीर तरबार । ई अभरणे हि झे भरतार ॥ |

 १३५ भक्त लोग । १३६ सगुण उपासक ॥ १३७ निर्गुण उपासक ।। १३८ पूर्व मीमांसक ॥ १३९व्याकरणी ॥ १४० वैशेषिक ॥ ( काल वादी ) १४१ तर्क वादी नैयाइक ॥ १४२ योगी ( पातांजल ) १४३ सांख्यक ॥ १४४ वेदांती ॥ १४५ बोलता ॥ १४६अद्भुत रूप ॥ १४७ शंका ॥ १४८ विज्ञानी ॥ १४९ कल्पना ॥ १५० उसके बुद्धि का जो विषय ।। १५१ अग्नि ।। १५२ आशा ।। १५३॥ क्षोभ, ऐद्ध ।। १५४ गहनः ।।