पृष्ठ:बीजक.djvu/४८०

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(४३२) बीजक कबीरदास ।। सो दरि बसै है सोरे निष्फल ज्ञानवारे मूढ़ जीव! टूटै तेर नाउँ कहे वा धोखा ब्रह्ममें जंगै तेरोजीवत्व को नाउँ टूटि जाइगो अर्थत् तेंहूं धोखा ब्रह्म कहावन लँगैगा । सो या ज्ञान में केती मरिगये हैं औघना कहे बहुत जीव मुये जाहि हैं । औ कैतेजनै यही रीति मरिनै हैं या धोखाब्रह्म निष्फलज्ञानते साहब न मिलेंगे । ण निष्फलको औ ज्ञानको व. है हैं तामेप्रमाण ॥ * णकारः कीर्त्तितो ज्ञाने निष्फलेऽपि प्रकीर्तितः १ ॥ १६ ॥ तता अति त्रियो नहिं जाई । तन त्रिभुवन में राखु छपाई ॥ जो तन त्रिभुवन माहं छपवैतत्त्वहि मिले तत्त्व सो पावे१७ त कहिये चोरको ता कहिये सीगटकी पूंछको सो हे जीव! साहबते चोराइकै आंखी छपाइकै सिंहजो साहब ताकीशरण छोड़िके सीगटकी पूंछनो धोखाब्रह्म तौनेको नैं गहे सो अतित्रियोकहे आसमता ताते कहे अत्यंत चारिउ ओर व्याप्ति त्रिगुणात्मिका माया तौनौ भरितेरी नहीं जाई मुक्तिहोबे की कहाकहिये । से तनकहे अणुमात्र जो हैं है ताको त्रिभुवनमें छपाय राखतिभै माया । सो येने तेरे पांचौ तन हैं तिनको औं त्रिभुवनमें छपायदे अर्थात् चारिउ शरीर तिनको संसारी मानले मैं इनते भित्रहौं वा शरीर को अभिमान जो हैं छाँडिदे तौ तत्त्व जो साहबको यथार्थज्ञान कि मैं साहबकोह तौन जब तोको मिलै तब तत्त्व जे साहब तिनको पावै । तत्त्व यथार्थ को कहै हैं तामें प्रमाण ।। * तत्त्वं ब्रह्मणि यथार्थे। औ साहब तत्त्वकहावै हैं तामें प्रमाण॥ राम एव परं तत्त्वं राम एवपरंतपः ॥ ता चोरको औ सीगटकी पूंछको कहै हैं तामे प्रमाण ॥ ** तकारः कतितश्चौरः क्रोष्टुपुच्छेपि तः स्मृतः ॥ १७ ॥ थथा थाह थहो नहिं जाई । इह थोरे वह थीर रहाई ॥ थोरे २ थिर रहु भाई। विनु थंभे जस मॅदिल भाई॥१८॥ थ कहिये शिला समूहको औ था कहिये रक्षाको । सो हे जीव! शिलासमूह जो मन जोनेके भयते अपनी रक्षाकरु काहेते थाहहै अर्थात् बिचार कीन्हे कुछु१-'ण' ज्ञान और प्रयोजन रहित ( बेफायदा ) को कहते । २-‘त' चोर और शृगालकी पूंछको कहतेहैं ।