पृष्ठ:बीजक.djvu/४९७

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कहरा ।। षट् चक्र निरूपण । संतौ योग अध्यातम साई ।। एकै ब्रह्म सकल घट व्याँपै द्वितिया और न कोई ॥ प्रथम कमल जहँ ज्ञान चारि दल देव गणेशको वासा । रिधि सिधि जाकी शक्ति उपासी जपते होत प्रकासा ॥ षट दल कमल ब्रह्मको बासा सावित्री सँग सेवा । घट सहस्र जहँ जाप जपत इंद्र सहित सव देवा ॥ अष्ट कमल जहँ हरि सँग लक्ष्मी तीजो सेवक पवना । षट् सहस्र जहँ जाप जपतहैं मिटिगा आवा गवना ॥ द्वादश कमलमें शिवको बासा गिरिजा शक्ती सारँग । घट सहस जहँ जाप जपत हैं ज्ञान सुरति लै पाइँग । षोडश कमल में जीवको बासा शक्ति अविद्या जाने । एक सहस जहँ जाप जपत ऐसा भेद बखानै ।। भाँर गुफा जहँ दुइ दल कमला परमहंस कर वासा । एक सहस जाके जाप जपतहैं करम भरमको नासा ॥ सहस कमलमें झिल मिल दश आपुइ बस्ते अपारा ।। ज्योति स्वरूप सकल जग व्यापी अक्षय पुरुष है प्यारा ॥ सुरति कमल परसत गुरु बोलै सहज जाप जप सोई । छासै इकइस सहसहि जापिले बूझै अजपा कोई ॥ यही ज्ञानको कोई बूझै भेद अगोचर भाई ।। जो बूझै सो मनका पेखै कह कबीर समुझाई ॥ १ ॥ ॐ यही रामनाम मन वचन के परे है सो आगे कहि आये हैं और सब मनके भितरै है यही रामनाम सबके ऊपर है तोहीमें मतौ तबही पारै जाउगे । । मेली सिष्ट कहे सिष्टजो संसार ताको मेलि देउ कहे छोड़ि देउ । औ चरचिद राखौ कहे सहज समाधि आगे कहि आयै हैं ताको चरचित राख कहे वह जानतरहु । अथवा वाहीमें जो आपने चितको चरा कहे चलत राखै ददु १९