पृष्ठ:बीजक.djvu/५४०

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| (४९४) बीजक कबीरदास । | अथ आठवां बसन्त ॥ ८॥ | कर पल्लवके वलखेलैनारि।पण्डित जो होयसोलेइविचारि। कपरा नहिं पहिरै रह उघारिनिरजीवै सो धनअतिपियारि२ उलटी पलटी बाजै सो ताराकाहुहि मारे काहुहि उवार॥३॥ कह कबीर दासन के दासाकाहुहि सुख दे काहुहि उदास४॥ कर पल्लवके वलखेलैनारि।पण्डित जो होयसोलेइबिचारि १ । सो श्रीकबीरजी कहे हैं कि, नारि जो माया सो पल्लव जो राम नाम करमें लैकै वाहीके बल खेलैहै । जब प्रथम यह जगत् की उत्पत्ति भई तब राम नाम लैकै बाणी निकसी है तामें प्रमाण ॥ ** रामनामेलैउचरीबाणी ॥ १ ताही जगत मुख अर्थ में चारिउ वेद ईश्वर ब्रह्म सब संसार निकस तामें । प्रमाणसायरको । “रामनामके देई अक्षर चारिउवेद कहानी सो तौनेहीके बलते सबसंसार बांध लियोहै । सो जो कोई पंडित होइ सो बिचारिकै छैलेइ । जगत्मुख साहब मुख यामें दोऊ अर्थ हैं सो साहब मुख अर्थ रामनाममें लेइ जगत्मुखअर्थ केवल माया खेलैहै ताकी छोड़िदेइ ॥ १ ॥ कपरा नहिं पहिरै रह उघारिनिरजीवै सोधन अति पियारि२ उलटी पलटी वाजै सो तार । काहहि मारै काहि उबार॥ • सो वा नारि माया कैसी है कि कपरा नहीं पहिरै उघारही रहै है अर्थात् वह माया सबको मूदे है वाको मुंदनवारो कोई नहीं है । जो कहो वाको ब्रह्म मूंदे होइगो तौ निर्जीव जो ब्रह्म सो धन जो माया ताको अति पियारहै अर्थात वाहूको सबलित कियेहै ॥ २ ॥ ॐ पुनि कैसाहै कि उलटी पलटी चार बाजैहै कहे काहूको अविद्यामें डारिकै नरकदेइहै औ काहूको विद्यारूपते स्वर्ग सत्यलोकादि देइ है ॥ ३ ॥ कह कबीर दासनके दासाकाहू सुख दै काहू उदास॥४॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि, दासनके दास कहे ब्रह्मादिक जे माया के दास तिनहूँके दास जीव तुम्हारी माया कैसे छूटे वे ब्रह्मादिकै मायाते नहीं