पृष्ठ:बीजक.djvu/५४७

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चाचर। (५०३) नारदको मुखमाड़कै, लीन्हो बदन छिपाय ।। गर्ब गहेली गर्बते, उलट चली मुसकाय ॥ ४ ॥ औ नारी चंद्र बदनी मृग नयनी बिंदुक दीन्हे पूँघुट उघारि गज की नाई चलिं सबको मोहै हैं । माया कैसी है कि, चंद्रबदनी है चन्द्रमाके समान याहू आपने पदार्थते सबको आनन्द देय है । मृगनयनी कहे यहू चंचल है । बिंदुक दीन्हे उघारि कहे आपने रागको फैलाय देईहै गजगति कहे धीरे धीरे यती सती सबको मोहै है ॥ ३ ॥ वै स्त्री नारद कहे जाके रद कहे दांत नहीं हैं ऐसे जे वृद्ध पुरुष तिनको मुख माड्रिकै बदन कहे बोलिबो छिनाय लेती हैं । अर्थात् और बोलिबो सो छूट जाइहै नारी नारी यहै कहै हैं । चाचरि वोऊ गावै लगे हैं । अथवा माया जो है सो नारद ऐसे मुनिको बांदरकी नाई मुख कै दियो । शीलनिधि राजाकी कन्याको काज करै चले । और स्त्री गर्व को गहे लोगनके मोहिने को चाचर में मुसक्याय च है । औ माया जो है सोऊ नारदके गर्बको गहिकै मुसक्यायकै चली है ॥ ४ ॥ शिव अरु ब्रह्मा दौरिके, दोनों पकरे जाय । फगुवा लीन छिनायके, वहुरि दियो छिटकाय ॥ ५॥ अनहद धुनि बाजा बजै, श्रवण सुनत भो चाव । खेलनि हारी खेलिहै, जैसी वाकी दाव ॥ ६॥ स्त्री जे ते पुरुषनते चाचर में पकारि फगुवा लैकै आपस में छिटकाय कहे बांटिलेय हैं तैसेही मायाजो है सोऊ ब्रह्मा शिव तिन को पकरिकै फगुवा जो नाना मत सो बैंकै अनेक ब्रह्मांडनमें छिटकाथ दीन्हों ॥ ५ ॥ चाचार में बाजा बने है ताको सुनिकै चाव होइ है खेलनिहारी आपनो दाईं ताकिं ताकि खेले हैं । औ माया जो है सोऊ अनहद बाजा बनाइ जौने के सुनतमें योगिन के चाव होइहै सो खलनिहारी जो कुंडलिनी शक्ति सो जैसो वाको दाइँ है तेसो खेलै है जीवको चढ़ाँव औ उतारै है ॥ ६ ॥ आगे ढाल अज्ञानकी, टारे टरत न पाव । खेलनिहारी खे लिहै,बहुरि न ऐसीदाव७सुरनर मुनि भूदेवता,गोरख दत्ता व्यासासनक सनन्दनहारिया,और कि केतिक आस॥८॥ की दवबर ३ का शव दाहों