पृष्ठ:बीजक.djvu/५५४

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( ९१०) बीजक कबीरदास । राम नाम धन बनिजहु हो रमैया राम । लादेहु बस्तु अमोल हो रमैया राम ॥ १० ॥ नौ वहिया दश गौन हो रमैया राम । पाँच लदनवा लादे साथ हो रमैया राम ॥ ११ ॥ पांच लदनवा परे हो रमैया राम । खावरि डानि रखोर हो रमैया राम ॥ १२॥ शिर धुन हंसा चले हो रमैया राम । सरवर मीत जोहार हो रमैया राम ॥ १३॥ आगी सरवर लागि हो रमैया राम । सरवर भो जरिक्षार हो रमैया राम ॥ १४ ॥ कहै कबीर सुनो सुन्तो हो रमैया राम । परखिलेहु खर खोट हो रमैया राम ॥ १६ ।। - हंसासरवरसरिरहोरमैयारामोजागतचोरघरमूसलहोरमैयाराम १ जोजारालसभागलहोरमैयाराम । सोवतगैलबियोगहारमैयाराम २ । सो हे राम नामके रमनवारे हेसा ! या शरीर रूप सरवरमें तेरो ज्ञान भागतमें चोरमसि लियो ॥ १ ॥ जो जागतहै मोहनिशाते सो भागै है संसारते सो हे राममें रमनवारे मोहनिशामें सोवत सब बिगोय गये हैं कहे नानायोनिमें संसारस्वप्नमें भटकत फिरै हैं ॥ २ ॥ | आजबसेरानियहोरमैयारामकाल्हिबसेरा दूरि होरमैयाराम परेड बिराने देश हो रमैयारामानैन मरेंगे ढूंढ़िहो रमैयारामधे सो हे राममें रमनवारे! आजु बसेरा नेरे है कहे मानुष शरीरई में ज्ञान होइ है सो पायेंहै काल्हि कहे जब या शरीर छूट जायगो तब बसेरा दूरि लैजायगे