पृष्ठ:बीजक.djvu/५५५

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बेलि ।। (५११) अर्थात् अनेक योनिनमें भटकत फिरौगे तब मेरो ज्ञान होयगे ? तें जागतै में । लूटिगयो हैं हैं का जागते रहे है नहीं जागत रहे ॥ ३ ॥ हे राममें रमनवारे ! आपनो देश साकेत ताका छोड़िकै बिराने कहे मनकेदेश में परयोहै तैसो अनेक योनिनमें तेरी आंखी आंशू ढारिडारि फूटिजायँगी ॥ ४ ॥ त्रास मथन दधि मंथन हो रमैया राम् ।। भवन मथ्यो भरि पूरि हो रमैया राम ॥६॥ हँसा पाहन भयल हो रमैयाराम । बेधि न प निर्माण हो रमैयाराम ॥ ६॥ तुम हँसा मन मानिक हो रमैयाराम । हटल न आनेहु मोर हो रमैयाराम ॥ ७॥ त्रास मथन जो है रामनाम तनै है दधिमथन कहे मथानी तौनेते हे रामनामके रमनवारे ! भव समुद्र जो तेरे हृदयमें भरपूर है ताका काहे नहीं मथ्यो ? ॥ ५ ॥ हेरामनामके रमनवारे ! तँतो चैतन्य है मनके साथ तुहूं जड़āगई है। काहेते कि निर्बाणपदको न बेधि कै नैं जड़ द्वैगये है जो निर्वाण पद को बवते तो मेरे साकेत को जाते ॥ ६ ॥ हे हंसा तुमहीं मन में मानिकै कहो तो जब तुम राम नामको जगतमुख अर्थ करन लग्यो है तब मैं हटक्यों है सो तुम नहीं मान्या है सो तुमत रामनाम कै रमैयाहो परंतु राम नाम जो मोको वर्णनकरै ताको अर्थ नहीं जान्यो संसारमें परयो है ॥ ७ ॥ जसरे कियो तस पायो हो रमैयाराम । हमर दोष जनि देहु हो रमैयाराम ॥ ८ ॥ अगम काटि गम कीन्हों हो रमैयाराम । सहज कियो वैपार हो रमैयाराम ॥ ९ ॥ राम नाम धन बनिजहु हो रमैयाराम । लादेहु वस्तु अमोल हो रमैयाराम ॥ १० ॥