पृष्ठ:बीजक.djvu/५५७

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बैलि। (५१३ ) आगि लगी सरवरमें हो रमैयाराम ।। सरवर जरिभो क्षार हो रमेयाराम ॥ १४॥ कहै कबीर सुनो संत हो रमैयाराम । परख लेहु खर खोट हो रमैयाराम ॥ १६ ॥ जब हंसा उड़ि चलैहै तब सरवर जो शरीर तामें आगि लँगै है सरवर भरिकै क्षारद्वै जाइ है सो हे रामनाम के रमनवारे तुम तो संसारमुख अर्थकैकै संसारमें परयो सो तुम्हारी यहदशा होतभई ॥ १४ ॥ श्रीकबीरजी कहै हैं। कि, हे सन्तो! साहब जो कहे हैं ताको सुनते जाउ । तुमतो.रामनाममें रमनवारेहो सो रामनामको जगतमुख अर्थ छाडिकै साहब मुख अर्थ करिकै साहब में लागो साहब की बाणी गहो खरखाट परखिलेहु कौन खराहै कौन खोट है। साहबमुख अर्थ खरोहै काहेते साहिबै अपने मुख कहे हैं जगतमुख अर्थ खटिहै। सो खाट छोड़िकै साहबमें लागो ॥ १५ ॥ इति प्रथम बेलि समाप्त । अथ द्वितीयबेलि। भल सुस्मृति जहडायडु होरमैयाराम। धोखा कियो विश्वास हो रमैयाराम ॥ १ ॥ सोतो हैं बन सीकसि हो रमैयाराम । शिरकै लियो विश्वास हो रमैयाराम ॥ २ ॥ ईतौ हैं विधि भाग हो रमैयाराम ।। गुरु दीन्ह मोहिं थापि हो रमैयाराम ॥ ३ ॥ गोबर कोट उठायहु हो रमैयाराम ।। परिहरि जैहो खेत हो रमैयाराम ॥ ४ ॥ ३३ ।