पृष्ठ:बीजक.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________


 (६)                    बीजक कबीरदास ।



प्रथम समर्थने साहब श्रीरामचन्द्र साकेत निवासी दयालु जिनके, लोकके प्रकाशमें समष्टिरूपते यह जीव है ते श्रीरामचन्द्र परमदयालु यह जीवको देखिहै कि कछू बस्तुकों याको ज्ञान नहीं है जब यह जीवपर साहबकी दयाभई तब सुरतिमात्र दैकै अपने जानिबेको वाको समर्थ करतभये कि जब या सुरातहोयगी तब मोकोजानैगो मैं हंसस्वरूप देंकै अपनेलौक लैआऊंगो । जहां मनमायी कालकीगतिनहींहै तहां सुखपावैगो अबैतो याको सुखको ज्ञानही नहीं है । यह करुणा कारकै वह समष्टिरूप जीवके घटमें सहजही सुरति को. उच्चारकरत भये कहे अंकुर करतभये । सो साहबतो अपने जानिबेको सुरतिदियो कि मोकोजॉन औ यह जीव वही सुरति को पाइकै. औ मनादिकन को कारण इनके रहंबई केरै औ शुद्ध रहै दूधरहै जीव अपनी शुद्धता रूप दूधर्म जगत्को कारण बनोई रहै तामें वही सुरति को जामन दैदियो सो बिनशिगयो सो वह सुरति पाइकै साहबकेपास तो न गयो जीव बिनशिकै इच्छादिक ने सात तिनको बिस्तार करत भयो। आ यह चैतन्य जीवको सुरति कै साहब चैतन्य कैरैहै। साहब चैतन्यो को चैतन्यहै तामें प्रमाण इलोक। “नित्यानित्यश्चेतनश्चेतनाना। द्रव्यंकर्मचकालश्चस्वभावोजीव एवचायनुग्रहतःसंतिनसंति यदुपेक्षया इति भागवते॥ॐ इच्छादिकन को कौन सात.बिस्तार करतभयो सो आगेकहैहैं ॥३॥ 

दोहा- दूजेघटइच्छाभई, चितमन सातौकीन्ह ॥ सातरूपनि रमाइया, अविगतकाहुनचीन्ह ॥ ४ ॥

जब याको साहब सुरति दीन तब जीवके जगत को कारणमें रामाज्ञान बनोईरहै तेहिते सुरति साहबमें न लगायो जगत् मुख लगायो । जब सुरति जगत् मुखलाग्यो तबप्रथम जगत्को कारण पुष्टभयो विनाशगयो तेहिते दूसर इच्छा रूप अंकुरभयो तीसर चित्तभयो चौथमनभयो पांचौंबुद्धिभई छठौं अहंकार भयो सातौं अहंब्रह्म कहेअनुभवते भयोजो ब्रह्म ताकमान्यो कि मैंहींब्रह्महौं सों शुद्धते अशुद्ध कै सातबिस्तार कारकै समष्टिरूपजों नीव सो अहंब्रह्मास्मिमान्ये तब याको अनुभव ब्रह्ममाया सबलित भयो, ताहीद्वारा जगत् उत्पन्न भयो, ताहीदारा यंहजीवौ उत्पन्नभयो अथव समष्टिरूप जीवको अनुमान जो ब्रह्म सो