पृष्ठ:बीजक.djvu/५७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

लाखी । १९२७) पंचदेहका निर्णय ॥ एकजीवको स्वतःपद, बुद्धिभ्राँति सोकाल ।। कालहोइ यहकाल-रचि, तामें भये बिहाल ।। बीहाले को मतो जो, देउ सकल बतलाय । जाते पारख प्रौढ़ लहि, जीव नष्ट नहिं जाय ।। करि अनुमान जो शून्यभो, सूझ कतहूं नाहिं ।। आपु आप बिसरो जबै तन बिज्ञान कहि ताहि ।। ज्ञान भयो जाग्यो जबै, करि आपन अनुमान । प्रतिबिंबित झाई लखै, साक्षी रूप बखान ॥ साक्षी होय प्रकाश भो,महा कारण त्यहि नाम । मसुर प्रमाण सो बिम्बभो,नील बरण घन श्याम ।। बढ्यो बिम्ब अध पर्व भो, शून्याकार स्वरूप । ताको कारण कहतहैं, महँ अँधियारी कृप ।। कारणसों आकार भो, श्वेत अँगुष्ठ प्रमान ! वेद शास्त्र सब कहतहैं, सूक्षम रूप बखान ॥ सूक्ष्मरूपते कर्मभो, कर्महिते यह अस्थूल । परा जीव या रहटमें, सहै घनेरी शूल ॥ | संत षट प्रकारकी देही । स्थूल सूक्ष्म कारण महँकारण केवल हंस कि देही ।। साढ़े तीन हाथ परमाना देह स्थूल बखानी । राता बर्ण बैखरी वाचा जागृत अवस्था जाना। रजोगुणी उकार मात्रुका त्रिकुटा है अस्थाना ।। मुक्तिश्लाक प्रथम पद गात्री ब्रह्मा बेद बखाना ।। पृथ्वी तत्त्व खेचरी मुद्रा मग पपील घट कासा । क्षए निर्णय बड़वाग्नि दशेंद्री देव चतुर्दश वासा ।। १ इस ग्रन्थमें षट्देह के वर्णन है पर याको नाम पंचदेहका निर्णयह या- 4:२९ यहहै कि, हसदेह को दूसरे देहन के साथन मिलाय अलग मान है।