पृष्ठ:बीजक.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

             आदिमंगल ।                 (७)          
इच्छा कियो एकते अनेकहोऊं सो वा अनुमान ब्रह्मसमष्टिजीवकोहै यहिहेतु ते वहसमष्टिजीव एकतेअनेकद्वैगयो । औ फिर वहसमष्टिरूपजीवको जो अनुमान ब्रह्मसो बिचायो कि ई जे अशुद्धरूपजीवात्मा तिनमें प्रवेश कैकै नामरूपक याही अर्थमें प्रमाणश्लोक ॥ “सदैवसौम्येदमग्रआसीदेकमेवाद्वितीयं तदैक्षतबहुस्याँ अनेनजीवेनात्मनानुभविश्यनामरूपेव्याकरवाणिइत्यादिश्रुतयः॥ जो कहो वा सत् ब्रह्मजीवको अनुमान कैसेकहीहौं ब्रह्महीसबभयो ऐसोकाहेनहींकहीहौतौ ॥ यते। वाचोनिवर्तन्तेअभाष्यमनसासहं ॥ इत्यादिक श्रुतिनकारकैमनबचनपरे सत्नाम कहनोवामें नहीं संभवितहै काहेते वो निर्विकारहै सविकार हुँकै एकते अनेक वैजैबो नहीं सम्भवै या हेतुते यह समष्टि जीवही अपनो अनुमान रूप धोखा ब्रह्मठाटकैकै माया सबलित ढुकै तद द्वारा जगत् उत्पन्नकैकै तदद्धारा आप उत्पन्नāकै समष्टिते व्यष्टिद्वैगये । अविगति समर्थ ने साहब हैं। तिनको ना चीन्हत भये । यह संक्षेप सूक्ष्मरीतिते जो उत्पत्ति भई सो कहिदियो। औ जब जीव साहब के जानिबे को समर्थ भयो तब जैसी उत्पत्ति भई है सो कहैंहैं साहब जो सुरति दियो सोतो अपने में लगायबेको दियो यह संसार में लगायो परंतु जो संसार ते बँचिकै अजहूं सुरति सम्हारै साहब मेलगावै तो साहब के हुजूर आठौपहर बनोरहै अर्थात् साहबै सर्वत्र देखेपरै संसारदेखिही ना पैरै तामें प्रमाण कबीर जी को साखी ॥ सुरात हँसी संसार में, तेहिसे परिगादूर सुरति बांधि स्थिर करै, आठौपहर हजूर ॥ १ ॥ आगे जौनीतरह ते उत्पत्ति भई साहबको त्याग संसारीभयो सुरति पाय काजकरिबेको समर्थभयो तबहूँ साहब सारशब्दको उपदेश दियॉहै ताको साहबमुख अर्थ ना समुझिकै संसारमुख अर्थ समुझिकै ब्रह्मकी कल्पना कैकै संसार को उत्पन्न कैकै संसारी भयो है यह जीव सो आगे कहैहैं ॥ ४ ॥
दोहा-तब समरथके श्रवणते, मूल सुरति भइसार॥

| शब्द कला ताते भई, पांच ब्रह्म अनुहार ॥५

साहब को दियो सुरति पाईंकै समरथ भयो जो समष्टि जीव ताके श्रवण में मूळसुरति जो साहब अपने जानिबे को दियो है सो सार भई कहे रामनाम