पृष्ठ:बीजक.djvu/५८१

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साखी । (५३७) और राग करिकै और लगवार कहे नाना मतनमें नाइके नाना मालिंक बनावतभै । धुनि यहहै कि, आपने स्वरूपको देखु ॥ १५ ॥ हंसा सरवर तजिचले, देही परिगै सुन्नि ॥ कहै कबीर पुकारिकै, तेई दर तेइ थुन्नि ॥ १६॥ हे हंसाजीव! विना साहबके जाने या सरवररूपी शरीर तजिकै जाउगे तब या देही सुन्नि पारनायगो अर्थात् मरिजायगी । सो श्री कबीरजी कहै हैं कि, हम पुकारिकै है हैं बिना साहबके जाने तेई दर तेई शूनी बने हैं अर्थात् नये तलायेमें लाठि गाड़ि जाइहै सो जहैं जायगो तहैं देहरूपी सरवरमें बासन । रूपी दरमें कर्मरूपी यून्हि गाड़ि लेउगे । पुनि पैदा होइगो जनन मरण न छूटैगो ॥ १६ ॥ हंसा बक यक इँग लखिये, चरें एकही ताल । क्षीर नीर ते जानिये, वक उधेरै तेहि काल॥ १७॥ बकुला और हंस एकही रंग हाइहैं और एकही ताल में चरै हैं परन्तु जब नीरक्षीर एक करिकै धारिदियो वे दूध पीलिये पानी रहिगया तब जानिपरे हस है । औं नीर क्षीर जुदो कीन न भयो तब जान्यो कि बगुला है । ऐसे टीका कंठी माला टोपी सब बराबरै होइ हैं जब बिचार करनलग्यो मन माया ब्रह्म जीव इनते साहबको अलग मान्य तौ जान्यो कि ये हंस हैं जो मनमाया ब्रह्म जीव ते अलग न कियो साहब को तौ जान्या कि ये बगुला ॥ १० ॥ काहे हरिणी दूवरी, चरै हरियरे ताल ॥ | लक्ष अहेरी एक मृगा, केतिक टोरो भाल ।। १८ ॥ जीव कहै है कि हे हरिणी! बुद्धि तें काहे दूबरी है रही है । संसार रूपी हरियरे तालमें चरिकें यह संसारताळमें लक्ष तौ अहेरी कहे मारनवारोहै सो रौं केतिक भार टारोगे मरिही जाइगो । सो हरियर है जौने "] तौनमें काहे