पृष्ठ:बीजक.djvu/५८२

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(६४०) बीजक कबीरदास । मकार है। सो जरदबुन्द कहे जरद रज स्त्रीको और बुन्द वीर्य पुरुषको ये दुनहुनके संयोगते शरीररूप कूकुही जीवके लगि गई । जैसे खेतनमें कूकुही लगि जाइ है सो कबीरजी कहै हैं कि, याके भीतर विचार करि देखो ते यहि जीव को स्वरूप जानि परे । कूकुही छड़ाइबो जैसे कुकुहीते अन्ननाश है जाइ है। ऐसे याहु शरीररूप कूकुही जीवके लगी है सो एकही शुद्धता को नाश कै देइ है ॥ २५ ॥ पांच तत्त्व लै या तन कीन्हा, सो तन लै कह कीन्ह । कर्महिके वश जीव कहतहै, कर्महिको जिय दीन्ह २६ या पांच तत्त्वनको लैकै या शरीर कियो सो या शरीर लैकै नैं कौन काम कीन्ह्यो, कर्म के बश द्वैकै मेरो अंश जो जीव सो कर्महि को देत भयो । मेरो हुँकै अर्थात् कमैके बश द्वेकै संसारी भो जीव सो कौन बड़ो काम कियो जीव कहावन लग्यो ॥ २६ ॥ पांव तत्त्वके भीतरे गुप्त वस्तु अस्थान ॥ विरल मर्म कोइ पाइहै, गुरुके शब्द प्रमान॥ २७ ॥ पांच तत्त्वको जो या शरीर ताके भीतर जो गुप्तवस्तु जीवात्मा है ताको स्थान है ताको मर्म कोई बिरला पावै है कि, यह नित्य कौनको है यामें गुरु जे साहब हैं तिनका शब्द जो रामनाम सोई प्रमाण है । तौनेको अर्थ विचार करै तौ या जानि लेहि कि जीव साहबैको है ॥ २७ ॥ अशुनत खत अड़ि आसने, पिण्ड झरोखे नूर ॥ ताके दिलमें हौं बसौं, सैना लिये हजूर ॥ २८ ॥ अशुन कहे शून्य नहीं वा निराकारके परे अशून्य जो साहबको तख्त आडिकै तामें आसन कैकै अर्थात् ध्यानमें रत पिण्ड जो है शरीर ताके झरोखा जे हैं। नेत्र तिनते साहबको जो कोई नूरदेखै कि, सब साहिबैको प्रकाश पूर्ण है सर्बत्र ताके दिलमें आपने परिकरते सहित बसौह ॥ २८ ॥