पृष्ठ:बीजक.djvu/५८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

साखी । तो कल्पान्तमें कोई नहीं रहनाय है जो कोई रहिगयो जलबढ्यो तो जलमें मिलिंकै रहिगये अग्नि बढी अग्नि में मिलिंकै रहिजाइ है तो महाप्रलय में नहीं हि जाइ है ।। ४१ ॥ | गोरखरासया योगके, मुये न जारी देह ।।। माँसगली माटी मिली, कोरो माँजी देह ॥४३॥ | जो कहौ गोरख तो बने हैं तो प्रलयादिकनमें वोऊ न रहेंगे । योग के रसिया जे हैं गोरख ते ऐसी योग हजारन बर्ष कियो कि मरयोतो देहको न जाग्यो मांसगलिकै माटीमें मिलिगयो तब कोरो कहे मांजी कहे शुद्ध देह गोरखकी कढ़िआई आखिरपर वही प्रलयादिकनमें न रहेंगी । सो उनकीदेह मुयोकह ऐसो योग कियो कि जाते अज्ञान न रहिगये संसार छुट गयो संसारते मरिगये कै उनकी सूक्ष्मादिक देहौ मरयों पर न जरी जब देह न जरी तब पुनि २ संसार में आवते भये कल्पांतरनमें सो कल्पान्तरमें गोरख आदिदैकै योगी सब अवै हैं सो आगे कहै हैं । ४२ । । बनते भगि बिहडे परा, करहा अपनी बानि ।। वेदन ङ्रह क साँ कुहै, को करहाको जान ॥ ४३॥ बन जो है संसार तौनेते भागिकै बिहड़ जो है अटपट गैले ब्रह्म तामें परयोंजाइ । सो यह जीवको सदा स्वभावई है कि, मलयादिकनमें ब्रह्ममें गयो है पुनि करहा कहे करहि आयो संसार में जन्म लियो शरीर धारणकियो । से यहजीव संसार योगादिक साधन कियो । सो यह वेदन कहे पीड़ा जीव काखों कहै औ शरीर काहेते करहि आयो यह को जानै जैसे आम्रादिक वृक्ष करहि आवै हैं कहे फूलिआवै हैं फेरि फरै हैं अपनी ऋतुपाइकै तैसे जब महाप्रलयादिकभये तब लीन होइ गयो जब उत्पात्री प्रकरणभयो तब फेरि कहिये कहे शरीर धारणकिये पुनि नानाकर्म करकै नाना फल पावन लगे ॥ १३ ॥ | बहुत दिवस सों हीठिया, शून्य समाधि लगाय ।। करहा परिगा गाड़में, दूरि परे पछताय ॥ ४४॥ ३५