पृष्ठ:बीजक.djvu/५९१

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साखी । (५४९) गिरही तजिके भये उदासी, बन बँड तपको जाय ॥ चोली थाकी मारिया, बरइनि चुनि चुनिखाय॥२२॥ घर छोड़कै जगत्ते उदास भये, वन पहारमें बैठे जाय । साहब को तो न जान्यो । शरीर औटिकै तपस्या करन लगे । सो या मारते कहे कन्दर्प ते चोली थकिगई कहे वीर्यकी हानि वै गई जब बृद्ध ६ गये तब जैसे चोली बरइनि की थकिगई तब बरइनि सरे सरे पान निकारिडारै है नये नये पान चुनिचुनिकै खायहै । तैसे माया जो है बरइनि कहे ज्ञानभक्ति को बरायदेनवारी कहे दूरि करनवारी सो पुरान पुरान जे शरीर हैं तिनको निकारि डारयो नये नये सुन्दर देकै स्वर्गादिकनको सुख दियो । राजाबनायो, धनवान् बनायो भोग कराइ कराइकै उनको माया मृत्युरूप खाय लियो । ज्ञानी भक्तियोगी तपस्वी कोई नहीं बचे हैं जे साहब को जानै हैं ते बचे हैं ॥ ५२ ॥ राम नाम ज़िन चीन्हिया, झीने पिंजर तासु ॥ नयन न आवै नींदरी, अंग न जामैःमाँसु ॥५३॥ जिन रामनामको चीन्ह्यो है तिनके पिंजर झीने वैगये हैं। पांचो शरीर उनके छूटिगये । यह स्थूल शरीर कैसो बन्यो है जैसे सूमा जरिजाय ऐंठनि बनी रहै जब यह शरीर छूटैगो तब हंस शरीर में स्थित बँकै साहब के पास जाइगो सो इनका शररूपी पिंजरा झीन है गयो है औ नयनन में नींद नहीं अवै है कहे सावायदेंनवारी जो माया है सो उनको स्पर्श नहीं करै है औ अङ्गमें पुनि माँस नहीं जामै अर्थात् पुनि वै शरीर धारण नहीं करै हैं ॥५३॥ जे जन भीजे राम रस, विकसित कबहुं न रुक्ख ।। अनुभव भाव न दशै, ते नर सुक्ख न दुक्ख ॥५४॥ जे जन श्रीरामचन्दके रसमें भीजे रहै हैं ते सदा बिकसित रहै हैं. उनका हृदय कमल सदा प्रफुल्लितई रहै है रूख कबहूँ नहीं रहै है । औ रूख जो है अनुभव भाव वह धोखा ब्रह्म सो उनको कबहूँ नहीं दरौं है । औ ते नरनको न संसारको सुख होइहै न दुःखहोइहै वै रामरसही में मग्न हैहैं ॥ ५४॥