पृष्ठ:बीजक.djvu/६००

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(५६०) बीजक कबीरदास । जाकी जिह्वा बंद नहीं है जौने मतको चाहै तौनेन मतको प्रतिपादन करे। औजिनके हृदय में साहबके नामरूपादिक नहीं हैं तिनके संग कबहूँ न लागिये कच्चे हैं उनके संग लागेते संसारमें परौगे ॥ ८२ ॥ पानी तो जिदै ढिगे, क्षण क्षण बोल कुबोल॥ मन धाले भरमत फिरें, काल देत हींडोल ॥ ८३॥ पानीरूप जो बानी है सो याके जीभके ढिगै है छिन छिनमें कुबोलई बोलबालै है असरबाणी बोलि २ बानीरूप पानीमें भूड़िगयो अथवा ब्रह्ममायाकी आगी बुझावनवारो पानी याके जीभहीके ढिगहै सो नहीं कहै है छिन छिन कुबोलही बोलै है सो मनके घालेकहे फेरि संसारमें भरमत फिरै है काल नों है सो याको हिंडोल रूप शरीर दिया है सो झूढ़त फिरै है कबहूँ मानु होय । कबहूँ पशु पक्षी इत्यादिक शरीर धारण करे है ।। ८३ । । हिलगें भाल शरीरमें, तीर रही टूटि । चुम्बक विन निकलें नहीं, कोटि पहन गये फूटि॥८४॥ जिन मतनमें श्रीरघुनाथजी नहीं मिले हैं तेई मतनके बाण याके लगे हैं। नाना कुमतिरूपी गाँसी याके अटकी हैं सो रामनाम चुम्बक बिना वे नहीं निकसै हैं ॥ ८४ ।। । आगे सीढ़ी सॉकरी, पाछे चकना चूर । पदा तरकी सुन्दरी, रही धका है दूर ॥ ८॥ साहबके यहां की गैल बहुंतं सॉकरी है कोई कोई पावै है है पाछे संकरमें गिरै तौ चकनाचूर लैजाय परदातरकी सुन्दरी जो, माया से जड़ को साहबसों लगनलगावन लॉगैहै ताको धक्का देइहै औ जो कोई साहबके सम्मुख भयो वही राह चढ्यो तेहिते दूरिरहै है धुनि या है। कि, जो वाके जायगी तौ गैलसँॉकरी है दूसरे की समाई नहीं है पीसिजायगी यहडेरैहै ॥ ८५ ॥ संसारी समय बिवारिया, क्या गिरही क्या योग ।। अवसर मारो जात है, चेतु बिराने लोग ॥ ८६॥