पृष्ठ:बीजक.djvu/६०९

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साखी । (५७१) | या मानुष बिचारा क्याकरै जाके शरीरमें शून्य जो धोखाब्रह्म सो समाय रह्यो है सो धोखाब्रह्मको झाँकिउ कहे देखिउ चुक्यो कि इहां कुछ बस्तुनहीं है । साहबको ज्ञान न उपन्यो तौ कबीरजी कहै हैं कि मैं काको पुकारौं वहतौ बड़ी अज्ञानी है बूड़िगयो जो प्रत्यक्ष देखों नहीं मानैहै कि यह शून्यही है यामें कछु न मिलैगो तो मेरो कह्यौ कैसे सुनैगों ॥ १११ ॥ मानुष जन्महिं पायकै, चूकै अबकी घात ॥ जायपरै भवचक्रमें, सहै घनेरी लात ॥ ११२ ॥ चौरासीलाख योनिनमें भटकत भटकत ऐसो मानुष शरीरपायकै अबकी जो घातचुक्यो साहबको न जान्यो तौ संसारचक्र में परैगो और यमकी घनेरी . लातें संगो ॥ ११२ ॥ ज्ञान रतनको यतन करु, माटी का शृंगार ॥ आया कविरा फिरिगया, झूठा है हंकार ॥ ११३ ॥ साहबके ज्ञानरतनको यतनकर जाते साहब को ज्ञानहोय यहजो माटीकहे शरीरको शृङ्गार करै है सो अनित्यहै कबिरांकहे कायाको बार जीव यह संसारमें आया और फिरिगया तबशरीर पराय जाता है यह जो अहंकार करताहै कि हम शरीरहैं हमब्राह्मणहैं क्षत्रिय वैश्य शूदहैं सोसब झूठे हैं औ जो फीका है संसार यह जो पाठहोय तौ यह अर्थ है कि साहब के ज्ञानरतनको जो यतन करै है ताको या संसार फीकै लगे है जो कोई दाखको खानवारो है ताको महुवा फीकै लगै है ॥ ११३ ॥ मनुष जन्म दुर्लभ है, होय न दूजीबार ॥ | पक्का फल जो गिरिपरा, बढुवार न लागैडार ॥ ११४॥ यह मानुष जन्म तिहारो बड़ो दुर्लभैहै जोन अबैहो तौन फिरि न होउगे पक्काफल गिरिपरै है तौ पुनि वह डारमें नहींलगै है अबै साहबके जानिबेको समयहै सो साहबको जानिलेउ ॥ ११४ ॥