पृष्ठ:बीजक.djvu/६२८

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(९९० ) बीजक कबीरदास । झूठ जवाहिरको बनिज, तब लागि परि है पूर । जबलगि मिलन पारखी, घने चढ़ा नहिं कूर सो या मायाके रंगवारे मानुष परखतमें खोटही निकसै हैं ॥ १६५ ॥ हरि हीरा जन जौंहरी, सबन पसारी हाट ॥ जब आवै जन जौहरी, तबही रोकी साट ॥ १६६॥ हरि जे हैं तेई हीरा हैं औ जन जेहैं तेई जहरी हैं कहे जाननवारे हैं सो सब जीव हाट लगावन लगे कहे साहब को जानन लगे ज्ञान कथनलगे गुरुवालोग आपने मतमें बैंचिगये सो जब साहबके जाननवारे जनाय देनवारे साहब जन जौंहरी आये तब सबके मत खंडन करि हीराके-समीप कनी जे जीव तिनको पहुँचाय देतभये अर्थात् जीवनको या जनाय दिये कि तुम साहबके हौ साहब में लगौ या हीरौ के साटको अर्थ है और मतनमें परे जननमरण न छूटेगे। ये कनफुका संसारही को लैजायगो तापमाण॥कनफुक्कागुरु हद्दका बेहदक गुरु और ॥ बेहदका गूरु जो मिल, तब पावै निज ठौर ॥ १६६ ॥ | हीरा तहां न खोलिये, जहँ कुंजरोंकी हाट ॥ सहजै गाँठी बाधिकै, लगो आपनी बाट ॥१६७॥ । जहां कुंजरों की हाट है तहां हीरा न खोलिये काहेते कि वे भांटा खीराके बेचनवारे हीराको भेद कहांनानैं अर्थात् जहां आपने आपने मतमें काउ काउ करि रहे हैं तहां साहबके ज्ञानरूपी हीरा न खोलिये साहब में मनलगाये एकान्त बैठि रहिये यही आपने वाटमें लगे रहिये ॥ १६७ ॥ | हीरा परा बजारमँ, रहा छार लपटाय॥ बहुतक मूरख चले गये,पारिख लिया उठाय॥१६८॥ हीरा जो है रामनाम जेहिते साहबको ज्ञान होइँदै । सो बनारमें पराहै कहे सब संसार के लोग कहै हैं छारमें लपटाय रह्यो है । अर्थात् नानामत नानाज्ञान रामनामहीते निकसे हैं, औ सब मत रामनामही ते सिद्ध होय हैं यह राम नाम साहब को बतावै है ते कोई नहीं जानै हैं । या नहीं जानैं ते ऐसे ने