पृष्ठ:बीजक.djvu/६३

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( १९) बीजक कबीरदास ।

       दोहा—जबअक्षरकेनदगई, देवीसुरतिनिर्वान ॥
          श्यामबरणयकअण्डहै, सोजलमॅउतरान॥ १२॥ 
 योगमाया में सोय रहे अक्षर कहे नाशरहित जे नारायण तिनको जब योगमाया जगायो नींद गई तब उनको निर्वाण सुरति देत भई । काहेते ई जे हैं नारायण तिनको निर्वाण रूप कहे निराकार रूप कैकै अंतर्यामी रूपते सबके भीतरदबाइ देत भई अर्थात् चेष्टाहत दिव्यगुणविशिष्ट सर्वत्रव्यापक अंतमी तत्त्वरूप जे निवौण नारायण तिनको सबके अन्तर दबाई देत भई कहे सबके अन्तर्यामी करि देत भई तेई प्रकट होतभये । श्यामवर्ण अण्ड कहे चतुर्भुज रूप धारण करके जल में उतरान कहे जल में रहतभये । सो इनके शरीर में शरीर ने हैं निराकार नारायण तिनको नित्य सम्बन्ध होतंभयो । सो रकारमें जोहै अकार ताको नारायण अर्थ करत भये औ भरतबाची जो है अकार सो अर्थ न समझत भयें यहां चौथे ब्रह्म की प्राकट्य भई ॥ १२ ॥
       दोहा-अक्षरघटमेंऊपजै, व्याकुलसंशयशूल ॥
        किनअण्डानिरमाइया, कहाअण्डकामल ॥१३॥ 

अक्षर ने नारायण हैं तिनके घटते ऊपने अर्थात् तिनकी नाभि में कमल होइ है तेहिते ब्रह्मा होइहै ते ब्रह्मा सब जगत् कैरै हैं तब समष्टि जीव शुद्ध ते अशुद्ध है कै ब्रह्मा ते उत्पन्न ढुकै बहुत शरीरधारण करैहैं ते ब्रह्म जब उत्पन्नभये तब ब्याकुलभये औ संशय करतभये कि कहां अण्डका मूलैहै औ को अंडाको बनायो है औ हम कहांते उत्पन्नभये हैं सो खोज्यो खोने ना पाया तब तपस्या करत भयो तब नारायण प्रकटभये ते ब्रह्मा ते कह्यो कि तुम जगत् की उत्पत्ति करौ यहकथा पुराणन में प्रसिद्धहै ॥ १३ ॥

     दोहा-तेही अण्डके मुख पर, लगी शब्दकी छाप ॥
      अक्षरदृष्टिसे फूटिया, दश द्वारे कबिाप ॥ १४॥ 

तैने ब्रह्मरूपी अण्डके मुखपर शब्दकी छाप लगी अर्थात् शब्द ब्रह्म जो वेदसार ताको नारायण बताय दियो । तौने को ब्रह्मा जपत भये तब वाहीते