पृष्ठ:बीजक.djvu/६३०

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(९९२ ) बीजक कबीरदास । | सुबको मालिक साहबएकही है औ साहब के जाननवारे बिरलेसाधु जे रामनाम को अपै हैं वेसब साधुनके शिरमौरहैं तामें प्रमाण ॥ * साधु हमारे सब खड़े,अपनी अपनी ठौर । शब्द बिबेकी पारखी,सो माथेको मौर तामें या दृष्टान्त है जैसे मलैगिरी चन्दन एक है, सिंहएकहै तैसे हीरा जो राम नामहै। तेहिते साहब को ज्ञान होय। सो एकही है औ ताके जाननवारे साधु एकही हैं. जमाति में नहीं चलै हैं ऐसेतो सब साधुही कहावै हैं औ राम नाम वस्तुखोयकै औरेमें लागै हैं ते अँवारहैं तामें प्रमाण ॥ ६ वह हीरा मतिना: नये, जेहिलादै वनजार ॥ यह हीरा है मुक्तिको, खोये जात गॅवार ॥ १६९ ॥ | अपने अपने शीश की, सवन लीन है मानि॥हिब हरिकी बात दुरंतरी, परी न काहू जानि ॥ १७० तीव जनजाकोमतनीकलाग्यौ सोतौनेनमतको शीशचढ़ाय मानि लीन्ह्यो हरिकी। जो दुरंतरी बातहै सबते दूरकहेपरे सो काहूको न जानिपरी कि सबके रक्षक साहबै हैं ॥ १७० ॥ हाड़ जरै जस लाकड़ी, तनवा जरै जस घास ॥ कविरा जरै सो रामरस, जसकोठी जरै कपास॥१७१॥ कबीर जे जीव तिनके रामरसजो है रामभक्ति सो कैसे उनके अंतःकरणमें जरै है जैसे कोठीमेंकपास भितरैजरै है याहीते उनके हाड़बार लकड़ी घासकी नाई जरै हैं ॥ १७१ ॥ घाट भुलाना बाट विन, भेष भुलाना कानि ।। जाकी माड़ी जगत में, सो न परों पहिचानि॥१७॥ घाटकहे सत्संग बाट जो है बिचार ताके बिना भूलिगयो अर्थात् साहबको तौ जान्यो न अपनेहीको ब्रह्म माननलग्यो बिचारभूलि गयो सत्संग काहेको करै आपने गुरुवनकी कानिमानि भ्रमवारे मत न छाड़तभये भेषवारे साधु सबभुलायगये सो जाकी माड़ी कहे माया जगत्में पूरिरही ऐसेजो साहब सो न पाहचानिपरयो माड़ी मायामें भूलिगये ॥ १७२ ॥